पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१३९

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है सैलसुतासुत षडानन तिन को बाहन मयूर ताको रिपु सर्प ताके मुष में है विष सो बिष बचन सुनावै है ॥ २२॥ राग सारंग। जिनि हठ करहु सारँगनैनी। सारंग ससि सारंग पर सारँग ता सारंग पर सारंगबैनी ॥ सारंग रसन दसन गुनि सारंग सारंगसुतहग निरष निपैनी । सारंग कही मुकौन बिचारौ सारंगपति सारंग रचि सैनी ॥ सारंग- सदनहि ले जु बरुन गडू अजहुं न मान- ति गति भडू रैनी। सूरदास प्रभुतुब मग जोवै अंधकरिपु ता रिपु सुषदैनी ॥ २३ ॥ जिनि हठ करो इति । उक्ति सपी की नायका सों। हे सारंगनैनी मृगननी । सारंग कमल चरन तिन पै ससि नष सारंग ससि अरु सारंग सिंह ताकी सी गति ता पर फेरि सारंग कटि ता पर सारंग सर नाभी हे सारंगबैनी पिकबैनी सारंग नाम जल तासु नाम सुधा सी है रसनी अरु सारंग कहीं बिजुरी तदवत गुन है दसन में अरु सारंग कहीग ताके सुत के गुन हैं दृगन में। अरु सारंग कहे अलि नाम सषी ताको काहे नहीं विचार है । सारंगपति जो कृष्ण हैं सो सारंग कमल ताकी सेज बिछाये बैठे हैं सारंग कही चंद ताहि वारुनी कहैं पछिम दिसा ले गई अंधकरिपु शिव ताको रिषु काम ताके सुषकी दीवे वारी हौ ॥ २३ ॥ का राग नट। देषे चारि कमल एक साथ । कम- लहि कमल गहे लावति है कमलहि