पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१४३

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[ १४२ ] धरत सिथिल गति उठे काम रस भोर। रतिपति सारंग अकन महा छबि उमगि पलक लगे भोर। श्रुति अव- तंस विराजत हरिसुत सिद्ध दरस सुत वोर॥ सूरदास प्रभु रस बस कोन्ही परी महा रन जोर ॥ २७॥ आजु बन इति । सपी की उक्ति सषी सों। आजु बन में राधा कृष्ण राजे हैं । दसन बसन कहै अधर ते पंडित है । मुष मंडित कई सोभित है औ गंड कहै कपोल ता विर्ष तिलक थोर राजत है। पग डग समाइ है सिंथिल गति है काम केलि करि भोर उठे हैं रतिपति कहे काम ताकी केलि सों सारंग कहें नैन सों महा छबि अरुन भये सो उमंग निद्रा सो पलक पलक लगे है औ भार कहे पुले हैं। स्तुति भूपन है हरि सुत कहे गज मोती सिद्धि सो दरस अमावस्या है ताको सुत अंधकार केस ताकी ओर कहे बीच में ॥ २७॥ राग कान्हरा। सोचति राधा लिषति नधन में बच- ननि कहत कंठ जल तास । शिति पर कमल कमल पर कदली पंकज कियो प्रकास ॥ तापर अलि सारंग प्रति सारंग रिपु लै किनो बास। तहँ अरिपंथ पिता जुग उद्दित बारिज बिबि रंगमजो अभा म ॥ माग मष ते परत अंव ठरि मर