पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ १०० ] हृदय लौलीन ॥ नंद जसोदा दुषित गोपी गाय खाल गोसुत सब मलिन गात दिनहीं दिन दुषीन । बकी बका सकटा त्रिन केसी बछ बृष भए समै अलि बिन गोपाल इति बैर कीन । उड्डव इहाई मिलाइ परै पाडू तेरे सूरप्रभु आरति हरै भई तन छोन ॥ ३६॥ ..

की स्यामता लोह ए तीन चौक चाह बारह प्रतिबिंब ऐसे कै चौबीस

धातु तीनों का मुष औ प्रतिबिंब छ चंद्र राधा औसपी के चारि तरयोना औ कृष्ण के दोय कुंडल ए छह तिन का छह प्रतिबिंब ए बारह पतंग कहैं सूर्या द्वादसै मधुप तीनों की छह पुतरी तिन का प्रतिबिंब ए द्वादश अलि मानो कहैं जानो ॥ ३६॥ भर भर लेत लोचन नीर । तुम बिना ब्रजराज सुंदर बिरह षेद अधीर ॥ कमल ऊपरधरतछन छन छिरक चंदन चीर । जाल मग ससि रोक राषत मलय मंद समीर ॥ हों तिहारे पास आई देषि मनसिज भीर। सूरदास सुजान सुंदर मिलि हरहु तन पीर ॥ ३७॥ उक्ति सषी की नायक प्रति । नीर नैन में भर लेत बिरह अधीर हो को उर कमल कुच चंद मलय रोकत ॥ ३७॥