पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१८२

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बीच है तहां श्री आचार्य जी महाप्रभू पांवधारै सो गऊघाट ऊपर श्री आचार्य जी महाप्रभू उतरे तहां श्री आचार्य जी महाप्रभू श्नान करि के संध्यावंदन करिके पाक करन को बैठे और श्री आचार्य जी महाप्रभून के सेवकन को समाज बहुत हुतो और सेवकहू अपने अपने श्री ठाकुर जी की रसोई करन लागे सो गऊघाट ऊपर सूरदास जी कौ स्थल हुतो सो सूरदास जी स्वामी है। आप सेवक करते सूरदास जी भगवदीय हैं गान बहुत आछो करते तातें बहुत लोग सूरदास जी के सेवक भये हुते सो श्री आचार्य जी महाप्रभू गऊघाट ऊपर उतरे सो सूरदास जी के सेवक देख के सूरदास जी सों जाय कही जो आज श्री आचार्य जी महाप्रभू आप पधारे हैं जिन ने दक्षिण में दिग्विजय कियौ हौ सब पंडितन को जीते हैं भक्ति मार्ग स्थापन कियो है सो श्री बल्लभाचार्य यहां पधारे हैं तब सूरदास जी ने अपने सेवकन सों कयौ जो तू जाय के दूर बैठि जब आप भोजन करि के विराजे तब खबर करियौ हम श्री आचार्य जी महाप्रभून के दर्शन को जांयमे सो वह तनक दूर जाय बैव्यो तव श्री आचार्य जी महाप्रभू आप पाक करत हुते लो पाक सिद्धि भयौ तब श्री ठाकुर जी को भोग समर्यो पाछे समयानुसार भोग सराय अनोसर कर के महाप्रसाद लै के श्री आचार्य जी महाप्रभू गादी ऊपर विराजे तहां सब सवेकहू पहुंच के श्री आचार्य जी महाप्रभून के आसपास आय वैठे तब वह सूरदास को सेवक आयौ सो सूरदास सों कही जो श्री आचार्य जी महाप्रभू विराजे हैं तब सूरदास जी अपने स्थल तें आय के श्री आचार्य जी महाप्रभून के दर्शन को आये तब श्री आचार्य जी महाप्रभून ने कह्यौ जो सूर आवो वैठौ तब सूरदास जी श्री आचार्य जी महाप्रभून को दर्शन कर के आगे आय वैठे तब श्री आचार्य जी महागभूनने का जो सूर कछु भगवद जल वर्णन करी तब सूरदास ने कही जो आग्या तव सूर- दास जी ने श्री आचार्य जी महाप्रभून के आगे एक पद गायौ सो पद । . . राग धनाश्री। हो हरि सब पतितन को नायक ॥ को करि सके वरावर मेरी इते मान को लायक था जो तुम अजामेल सों कीनी जोपाती लिख पाऊ। होय विस्वास भलो जिय अपने और पलित बुलाऊं ॥२॥ सिमिट जहां तहां ते सब कोऊ आय जुरे एक और । अब के इतने आन मिलाऊ वेर दूसरी और ॥ ३॥ होडाहोडी मन हर करि करे पाप भरि एटे ।।