राग देवगंधार। ब्रज भयौ महर के पूत जब यह बात सुनी। सो यह श्रीआचार्य जी महाप्रभून के आगे गायौ सो सुनि के श्रीआचार्य जी महाप्रभू बहुत प्रसन्न भये और अपने श्रीमुख ते कहें जो सूरदास मानों निकरही हुते पाछे सूरदास जी ने अपने सेवक किये हुते तिन सबन को नाम दिवायौ पाछे सूरदास जी ने बहुत पद किये पाछे श्री आचार्य जी महाप्रभून नें सूर- दास जी कौं पुरुषोत्तम सहस्रनाम सुनायौ तब सूरदास जी को संपूरण भाग- वत स्फुर्तना भई पाऊँ जो पद किये सो भागवत प्रथमस्कंध ते द्वादसस्कंध पर्यंत(ताई)किये तातें वे सूरदास जी श्री आचार्य जी महाप्रभून के ऐसे परम भगवदीय है पाछे श्री आचार्य जी महाप्रभू गऊघाट ऊपर दिन तीन विराज पार्छ फेर ब्रज कों पाव धारे तब सूरदास जी हू श्रीआचार्य जी महाप्रभून के साथ ब्रज कों आये । वार्ता प्रसंग ॥१॥ _____ अब जो श्री आचार्य जी महाप्रभू ब्रज कौं पाव धारे सो प्रथम श्री गोकुल पधारे तब श्री आचार्य जी महाप्रभून के साथ सूरदास जी हू आये तब श्री महाप्रभू जी अपने श्रीमुख सों कह्यौ जो सूरदास श्री गोकुल को दर्शन करौ सो सूरदास में श्री गोकुल कों दंडवत करी सो दंडवत करत मात्र श्री गोकुल की बाल लीला सूरदास जी के हृदै में फुरी और सूरदास जी के हृदय में प्रथम श्री महाप्रभूनने सकल लीला श्री भागवत की स्थापी है ताते दर्शन करत मात्र सूरदास जी को श्री गोकुल की वाल लीला स्फुर्तना भई तब सूरदास जी ने मन में विचायौ जो श्री गोकुल की बाल लीला को वर्णन करि के श्री आचार्य जी के महाप्रभूम के आगे सुनाइये जन्म लीला को पद तौ प्रथम सुनायौ है अब श्री गोकुल की बाल लीला कौं पद गायौ सो पद ॥१॥ राग विलावल। सोभित कर नवनीत लिये । घुटुरुवन चलत रेणुतनमंडित मुख लेप किये ॥१॥ चारु कपोल लोल लोचन छवि गोरोचन को तिलक दिये । लार लटकन मानो मत्त मधुप गन माधुरी मधुर पियें ॥२॥ कठुला कंठ बज्र केहरनख राजत हैं सखि रुचिर हिये। धन्य सूर एको पल यह सुख कहा भयौ सत कलप जिये ॥३॥ यह पद सूरदास ने गायौ सो सुनि के आप बद्दुत प्रसन्न भये पाछे
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१८४
दिखावट