और पद गाये तव श्री महाप्रभू जी अपने मन में विचारें जो श्रीनाथ जी के इहां और तौ सब सेवा को मंडान भयो है पर कीलन को मंडान नाहीं किया है तातें अब सूरदास जी को दीजिये तब आप श्री जी द्वार पधारे सो सूरदास जी को साथ लिये ही सो श्रीनाथ जी द्वार जाय पहुंचे तब आप स्नान करि के मंदिर में पधारे तब स्वरदास जी सों को जो सूरदास ऊपर आउ खान कार के श्रीनाथ जी को दर्शन करि तक सुरदास पर्वत ऊपर जाय के श्री नाथ जी को दर्शन किया तब आय. ने कयौ जो सूरदास कळू श्रीनाथ जी को सुनावी तब सूरदास ने प्रथम विज्ञप्ति को पद गायौ सो पद। राग धनाश्री. अब हों नाच्यो बहुत गुपाल॥ ___ यह पड़ संपूरण करि के श्रीनाथ जी के आगे गायौ तब श्री महाप्रभू जी में कयौ जो सूरदास अब तो तुम में कछु अविद्या रही नाहीं तुम्हारी विद्या प्रभू न ने दूरकीनी तातें कछु भगवद जस वर्णन करौ तब सूरदास ने महात्म और लीला ऐसो जस करि के गाय सुनायौ सो पद । राग गौरी। कोन सुकृत इन ब्रजवासिन को। यह पद संपुरण करि के गायौ सो सुनि के श्री महाप्रभू जी बहुत प्रसन्न भये सो जसो श्री आचार्य जी महा प्रथून ने मार्ग प्रकास कियौ हो ताके अनुसार-सूरदास जी ने पद किये श्री आचार्य जी महाप्रभून के मार्ग को कहा स्वरूप है महात्म्य ज्ञानपूर्वक सुदृढ स्नेह की तो परम काष्टा है और स्नेह आगे भगवान को महात्म्य रहत नाही तातें भगवान बेर बेर महात्म्य जनावत है नाम मकरन पूतना कारे सकट तनात करि गर्गाचार्य करि यमलार्जुन करि वैकुंठ दर्शन कार एस करि के भगवान में बहुत महात्म्य जतायौ परि इन ब्रज भक्तन को स्नेह परम काष्टापन्न है तातें ताही समें तौ महात्म्य रहे पाछे विस्मृत होय जाय। वार्ता प्रसंग ॥२॥ और सूरदास जी ने सहलावधि पद किये हैं ताको सागर कहिये सो सब जगत में प्रसिद्ध भये सो सूरदास जी के पद देशाधिपति ने सुनें सो सुनि के यह बिचायौ जो सूरदास जी काहू रीत(विधि)सों मिलैं तो भलो सो भगवद इच्छा ते सूरदास जी मिले सो सूरदास जी सों कयौ देशा- पिति ने जो सूरदास जी में सत्यो है जो तुमने बिसन पद बहुत किये हैं
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