पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१८८

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श्री नाथ जी की सेवा कीनी बीच बीच में श्री गोकुल श्री नवनीत प्रिया जी को दर्शन को आवते सो एक समें सूरदास जी श्री गोकुल आये श्री नवनीत प्रिया जी के दर्शन कीये और बाल लीला के पद बहुत सुनाये सो श्री गुसांई जी सुनि के बहुत प्रसन्न भये पाछे श्री गुसाई जी ने एक पालना संस्कृत में कीयौ सो पालना सूरदास जी को सिखायौ सो पालना सूरदास जी ने श्री नवनीतप्रिया जी झूलत हुते ता समय गायो सो पद। राग रामकली। प्रेषपर्यकशयनं । यह पद सूरदास जी ने संपूर्ण करि के गायौ सुनायौ श्री नवनीत- प्रिया जी को पाछे या पद के भाव के अनुसार बहुत पद कीये सो सुनि के श्री गुसांई जी बहुत प्रसन्न भये पालना के भाव अनुसार पद गायो सो पद। राग बिलावल। बाल बिनोद आंगन में की डोलीन । मणिमय भूमि सुभग नंदा- लय वलि बलि गई तोतरी बोलनि ॥ १॥ कठलाकंठ रुचिर केहरनख बजमाल बहु लई अमोलनि । बदन सरोज तिलक गोरोचन लर लटकन मधु गनि लोलनि ॥२॥ लीन्यों कर परसत आनन पर कळू खाय कछू लग्यौ कपोलनि । कहे जन सूर कहालों बरनों धन्य नंद जीवन जग तोलनि ॥३॥ और पद राग बिलावल । गोपाल दुरे हैं माखन खात । देख सखी सोभा जो बढी अति श्याम मनोहर गात ॥१॥ उठि अवलोकि ओट ठाढी है जिहिं विधि नहिं लखि लेत । चक्रित नैन चहुं दिस चितवत और सवन को देत ॥ २॥ सुंदर कर आनन समीप हरि राजत यहे अकार ॥ जनु जलरुह तजि बेर विधि सों लाये मिलत उपहार ॥३॥ गिरि गिरि परत बदन ते ऊपर दै दधि सुत के बिंदु । मानहुं सुधाकन खोरबत पिय जन बिंदु ॥४॥ बाल विनोद बिलोक सूर प्रभु वित भई व्रज की नारि । फुरतन बचन वर- जिवे को मन गहि बिचार बिचार ॥ ५॥ राग जैतश्री। कहां लगि बरनों सुंदरताई । खेल्त कुमर कतिक आंगन में नैन