पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९२

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[ १९१] चलन अच्छी नहीं थी। पीछे. ये सुधरे और सवालाख भजन का सूरसागर बना कर बड़े नामी हुए। लोग कहते हैं कि इन्हों ने अपनी आंख आप ही फोड़ी थी। 'सुगम पंथ' में पंडित गनपत लाल चौबे फर्स्ट असिस्टेंट मास्टर स्कूल राय- पुर ने लिखा है कि-सूरदास किंवा शूरदास-मदनमनोहर शूरध्वज ब्राह्मण दिल्लीनगर के समीप किसी ग्राम के रहनेवाले थे। किसी समय दिल्ली आये वहां एक दिन किसी स्त्री को कोठे पर खड़ी देख इस पर मोहित हुए,और कोठे की ओर इकटक चितै रहे। लोग इनकी दशा देख धिक्कारने लगे परंतु वह स्त्री घर से बाहर निकल बोली “विप्र जी क्या आज्ञा होती है" विप्र बोले "क्या सचमुच मेरी आज्ञा पालेगी" वह बोली "निस्सन्देह" मुझे ईश्वर साक्षी है तब तो वह विप्र के कहने के अनुसार दो सुइयां ले आई और जब बिप्र ने कहा कि मेरी छाती पर बैठ इन दोनों सुइयों को मेरे नेत्रों में घुसेड़ दे उस ने वैसाही किया और तबही से सूरदास कहलाने लगे। लोगों ने इन की बड़ी प्रशंसा कर इन के कहने के अनुसार मथुरा बिन्दा- वन में पहुंचा दिया यहां पर इन्हों ने सवा लाख विष्णु पद का एक बहुत बडा सरसागर नामी ग्रंथ बनाया निदान कुछ काल तक ये अकबर बाद- शाह की सभा में रहे और फिर परलोक को सिधारे। प्राचीन मनुष्यों की कहावत है कि ये उद्धव का अवतार थे वे सब कवियों में श्रेष्ठ गिने जाते हैं यथा:- दोहा-शूर सूर्य तुलसी शशी , उड़गण केसवदास । - अब के कबि खद्योत सम , जहं तहं करहिं प्रकाश ॥" . रामरसिकावली के टिप्पणी में लिखा है कि 'अंक वाले कवियों का ; आगे वर्णन किया जायगा।' परंतु मतिराम कवि का वर्णन काव्यरत्नाकर : में लिखा गया है अतएव यहां उन का कुछ काव्य लिखा जाता है। (१) मतिराम त्रिपाठी टिकमापुर वाले। .. पूरन पुरुष के परम दृग दोऊ जानि कहत पुरान घेद बानियो रति गई । कवि मतिराम दिनपति यों निसापति यों दुहुन की कीरति दिसान मांझ मठि गई । रवि के करन भये एक महादानी यह जानि जिय आनि. चिंता चित्त मांझ चदि गई । तोहि राथ् बैठत कुमाऊं श्रीमदोत चंद चंद्रमा की करक करेजेहूं ते कढ़ि गई ॥ १ ॥