पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९३

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ललितललाम । परम प्रवीन धीर धरम धुरीन दीनबंधु सदा जाकी परमेसुर में मति हैं । दुर्जन बिहाल करि जाचक निहाल करि जगत में कीरति जगाई ज्योति अति है ॥ राउ शत्रसाल के सपूत पूत भाउसिंह मतिराम कहै जाहि साहिली फवति है । जानपति दानपति हाड़ा हिन्दुवानपति दिल्ली पति दलपति वालाबंद पति है ॥ २!! ___कैसे आसमान से विमान से घटा से गज रावरे चलत मानौ मेरु से लहति है । अतल वितल तल हलत चलत दल गज मद रानै दिगदंती चिकरति है ।। कहै मतिराम संभु दुरद दराज ऐसे जिन्है पाइ कविराज आनंद भरत्ति है । कुंभ छाये पटपद मदनि करद नद कदनि बिलंद गढ़ गरद करति है ॥ ३ ॥ जब लगि कच्छप कोल सहस मुख धरनि भार धर । जब लगि आग दिलनि दावि सोहत दिग्गजबर ॥ जब लगि कषि पतिराम सगिरि सागर महिमंडल । जब लगि सुबरन मेरु सघन घन मगन अगनचल ॥ नृप सत्रुसालनंदन नवल भावसिंह भूपाल मनि । जग चिरंजीव तब लगि सुखित कहत सकल संसार धनि ॥४॥ दोहा-भौंह कमान कटाक्ष सर, समरभूमि बिच नैन । लाज तजेहूं दुहुन के, सलज सुहृद से बैन ॥ १॥ रूपजाल नंदलाल के, परिकरि बहुरि छुटैन । खंजरीट मृगमीन से, ब्रजबनितन के नैन ॥२॥ पानी को बसन कैयौं बात को बिलास डोलै कैधों मुखचंद चारु चांदनी प्रकास है। कवि मतिराम कैथों काम को सुजस के पराग पुंज प्रफुलित सुमन सुवास है ॥ नासा नथुनी के गज मोतिन कै आभा कैधों रतिवंत प्रगटित हिये को हुलास है । सीत करिबे को पिय नैन घनसार फैधरै पाला के बदन विलसत मृदु हास है ॥ ४॥ छंदसार पिंगल। दाता एक जैसो सिवराज भयो जैसो अव फतेसाहिसी नगर साहित्री समाजु है। जैसो चित्तौर धनी राना नरनाह भयो जैसोई कुमाऊं पति परो रज लाज है। जैसे जयसिंह जसवंत महाराज भयो जिन को