[ १९३ ] मही में अर्जी बाढयो बल साजु है । मित्रसाहि नंद सी बुंदेल कुलचंद जग ऐसो अब उदित सरूप महाराज है ॥ ६॥ ____लषमनहीं संग लिये जोबन विहार किये सील हिये बसै कहो तासों अभिराम को। नव दल सोमा जाकी विकसै सुमिन्द्र लखि कोसलै बसत कोऊ धाम ठाम को। कवि मतिराम सोभा देखिये अधिक नित सरस निधान कवि कोविद के काम को । कीनौ है कवित्त एक ताम रस ही को यासौं राम को कहत के कहत कोऊ बाम को ॥६॥ चंदन चढ़ारी नभ चंदनं चदारी अंग चंद उजियारी देखि नकराति कैसी है । फंद फंद फबदी गंसीली गांठि मंदि गदि मंदि मंदि मुख मंद मंतरात कैसी है ॥ मतिराम मिलन बिहारी तूं प्यारी चलु नितरति बारी आजु जकराति कैसी है । कतरात कैसी बात बतरात कैसी जात सतरात कैसी रात रत रात कैसी है ॥ ७॥ चोर की चोर छिनार छिनार की साहु की साहु बली की बली । ठग की ठग कामुक कामुक की अरु छैल की छैल छली की छली । परवीनन की परवीनही जानै मतिराम न जाने कहा धौं चली। उन फेरि दई नथ की मुकुता उन फेरि कै फूंकी गुलाब कली ॥७॥ गोपवधू तन तोलत डोलत बोलत बोल जुकोनल भाईं। अरु नितंबनि की गुरुता पगजात गयंदनि की गति नापैं ॥ आगम भो तरुनापन को मतिराम भनै भई चंचल ऑर्षे ।। खंजन के जुग सावक ज्यों उड़ि आवत ना फरकावत पांर्षे ॥८॥ येरे मतिमंद चंद धिग है अनंद तेरो जोपै दिरहीन जरि जात तेरे ताप ते । तू तो दोषाकर दूजे धरे हैं कलंक उर तीसरे सखानि संग देखो सिर छाप ते ॥ कहै मतिराम हाल हाजिर जहान तेरो बारुनी के बासी भासी राहु के प्रताप ते । बांधो गयो मथो गयो पियो गयो खारो भयो घापुरो समुद्र ऐसे पूतहीं के पाप ते ॥ ९ ॥ (२) शिवसिंहसरोज में लिखा है भूषण त्रिपाठी टिकमापुर जिले कानपुर सं० १७३८ में हुए । रौद्र वीर भयानक ए तीनौ रस जैसे इनकी काव्य में है ऐसे और कबि लोगों की कविता में नहीं पाए जाते ए महाराज प्रथम राजा छत्रसाल पला नरेश के इहां छ: महीने
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