शाने मानसिंह से जो संवत् १६०२ में विद्यमान थे संवत् १८७६ सक तीने जयसिंह हो गये हैं पर हम को निश्चय है कि ये कवि महाराज मानसिंह के पुत्र जयसिंह के पास थे जो महा गुणग्राहक थे औ दूसरे सवाई जयसिंह इन जयसिंह के प्रपौत्र संवत् १७५५ में थे यह बात प्रगट है कि जब महाराजे जयसिंह किसी एक थोरी अवस्था पाली रानी पर मोहित है रात दिन राजमंदिर में रहने लगे राज्य के संपूर्ण काज काम बंद हो गए तब बिहारीलाल ने यह दोहा बनाय राजा के पास तक किसी उपाय से पहुंचाया। दोहा-नहिं पराग नहिं मधुर रस, नहिं विकास यहि काल । .. ... अली कलीहूं सो बिध्यो, आगे कौन इवाल ॥१॥ इस दोहा पर राजा अत्यन्तं प्रसन्न है १०० मोहर इनामदै कहा इसी • प्रकार के और दोहा बनावो बिहारीलाल ने सात सौ दोहा बनाए औ ७०० अशरफ़ी इनाम में पाया यह सतसई ग्रंथ अद्वितीय है बहुत कवि लोगों ने इस के ढंग पर सतसई बनाकर अपनी कविता का रंग जमाना चाहा पर किसी कवि की सुर्खरूई प्राप्त नहीं हुई यह ग्रंथ ऐसा अद्भुत है कि हम ने १८ तिलक तक इस के देखे हैं औ आज तक तृप्ति नहीं है लोग कहते हैं कि अक्षर कामधेनु होते हैं सो वास्तव में इसी ग्रंथ के अक्षर कामधेनु दिखाई देते हैं। सब तिलकों में सूरतिमिश्र आगरे वाले का तिलक णिचित्र है औ सब सतसयों में बिक्रमसतसई औ चंदनसतसई इस के लगभग है। बिहारी कवि २ सं० १७३८ इन के महा सुंदर कवित्त हजारा में है। विवारीकवि ३ बुंदेलखंडी सं० १८०६ सरस कविता करी है। बिहारीदास कवि ४ ब्रजबासी सं० १६७० इन के पद राग सागरो. द्भव रागकल्पद्रुम में हैं। (४) नीलकंठमिश्र अंतरबेदि बासी संवत् १६४८ दास जी ने इन की प्रशंसा ब्रजभाषा जानने में करी है। नीलकण्ठत्रिपाठी टिकमापुर वाले मतिराम के भाई । संवत् १७३० इन का कोई ग्रंथ हम ने नहीं देखा । (६) बेनीकवि प्राचीन असनी जिले फतेपुर वाले। संवत् १६९० ए महान कवीश्वर हुए हैं इन की एक ग्रंथ नाइका भेद में अति विचित्र देखने में आया है इन की कविताई बहुत ही सरस ललित मधुर है । बेनीकबि २ बंदीदन ती जिले राइपोली के निवासी संबन्
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