पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। २९६ । १८४४ ए कवि महाराज टिकेत राइ दीवान नबाब लखनऊ के इहां थे औ बहुत बृद्ध कै संवत् १८९२ के करीव भर गए। बेनी प्रबीन ३ बाजपेई लखनऊ के निवासी संवत् १८७६ ए कवि महा सुंदर कविता करने में विख्यात हैं इन का ग्रंथ नाइका भेद में देखने के योग्य है। पेनी प्रगट ४ ब्राहाण कविंद कवि नरवरी निवासी के पुत्र संवत् १८८० इन की काव्य महा सुंदर है। (७) एक शंभु कवि का वर्णन काव्यरमाकर की टिप्पणी में है उसके सिवाय यहां लिखा है । शंभुनाथ मिश्र कवि सं० १८०१ ए महाराज महान कवि भगवंत राइ खीची के इहां असोथर में रहा करते थे शिव कवि इत्यादि सैकरों मनुष्यों को इन्होंने कवि कर दिया कविता में महा निपुण थे रसकल्लोल. १ रसतरंगिणी २ अलंकार दीएक ३ ए तीनि ग्रंथ इन के बनाये हुए हैं। शंभुनाथकवि बंदीजन सं० १७९८ ए कवि सुखदेव के शिष्य थे रामविलास नाम रामायण बहुत ही अद्भुत ग्रंथ बनाया है रामचंद्रिका की ऐसी इस ग्रंथ में भी नाना छंदें हैं। शंभुनाथकवि त्रिपाठी डौंडिया खेरेवाले सं० १८०९ ए महा- राज राजा अचलसिंह बैस डौंडिया खेरे के इहां थे राव रघुनाथसिंह के नाम बैतालपचीसी को संस्कृत से भाषा किया है औ मुहूत्तेचिंतामणि ज्योतिषग्रंथ को भाषा में नाना छंदों में बनाया है ए दोनों ग्रंथ सुंदर हैं। - शंभुनाथमिश्र कषि बैसवारे वाले सं० १९०१ ए कवि राना यदुनाथ सिंह वैस खजूर गाउं के इहां थे थोरी अवस्था में अल्पायु हो गया बैल वंशादरी औ शिवपुरान का चतुर्थ खंड भाषा में बनाया है। शंमुमताद कवि शंगार में सुंदर कवित्त हैं। (८)तोष कवि सं० १७०५ ये महाराज भाषा काव्य के आचार्यों में हैं ग्रंथ इन का कोई हम को नहीं मिला पर इन के कवित्तों से हमारा कुतुबखाना भरा हुवा है कालि दाल तथा तुलसी जी ने भी इन की कविता अपने ग्रंथों में बहुत सारी लिखी है। (९)चितामणि त्रिपाठी टिकापुर जिले कानपुर वाले सं० १७२९ ए महाराज भाषा साहित्य के आचार्यों में गिनेजाते हैं अंतरवेदि में विदित है कि इन के पिता दुर्गापाठ करने नित्य देवी जी के स्थान में जाते थे वे देवीजी बन की भुइओ कहाती हैं टिकमापुर से एक मैल के अंतर पर