[ १९७ ] हैं एक दिन महाराज राजेश्वरी भगवती प्रसन्न है चारि मुंड दिखाय बोली यही चारों तेरे पुत्र होंगे निदान ऐसाही हुवा कि चिंतामनि १ भूषन २ मतिराम ३ जटाशंकर या नीलकण्ठ चारि पुत्र उतपन्न हुए इन में केवल नीलकण्ठ महाराज तौ एक सिद्ध के आशीर्वाद से कवि हुए शेष तीनौ भाई संस्कृत काव्य को पढ़ि ऐसे पंडित हुए कि उनका नाम प्रलय तक बाकी रहेगा इन्ही के बंश में शीतल औ बिहारी लाल कवि जिनका लाल भोग है संवत् १९०१ तक विद्यमान थे निदान चिंतामनि महाराज बहुत दिन तक नागपुर में सूर्यबंशी भोसला मकरंदशाहि के इहां रहे औ उन्ही के नाम छंद बिचार नाम पिंगल बहुत भारी ग्रंथ बनाया औ काव्य विवेक २ कविकुलकल्पतरु ३ काव्यप्रकाश ४ रामायण ५ ए पांच ग्रंथ इन के बनाए हुए हमारे पुस्तकालय में मौजूद हैं इनकी बनाई हुई रामायण कवित्त औ नाना अन्य छंदों मे बहुत अपूर्व है बाबू रुद्र साहि सुलंकी औ शाहिजहां बादशाह औ जैनदी अहमद ने इन को बहुत दान दिए हैं इन्होंने अपने ग्रंथों में कहीं कहीं अपना नाम मनिलाल करि के कहा है। . चिंतामनि २ । ललित काव्य करी है। (१०) कालिदास त्रिवेदी बनपुरा अंतरवेद के निवासी सं० १७४९ ये कवि अंतरवेद में बड़े नामी गिरामी हुए हैं। प्रथम औरंगजेब बादशाह के साथ गोलकुंडा इत्यादि दक्षिण के देशों में बहुत दिन तक रहे तेहि पीछे राजा जोगाजीत सिंह रघुवंशी महाराज जंबू के इहां रहे औ उन्हीं के नाम बधूबिनोद नाम ग्रंथ महा अद्भुत बनाया औ एक ग्रंथ कालीदास हजारा नाम संग्रह वनाया जिस्में सं० १४८० से लेकर अपने समय तक अर्थात् सं० १७७५ तक के कवि लोगों के एक हजार कवित्त २१२ का। लोगों के लिखे हैं हम को इस ग्रंथ के बनाने में कालिदास के हजारा से बड़ी सहायता मिली है औ एक ग्रंथ और जंजीरा बंदनाम महा विचित्र इन्हीं महाराज का हमारे पुस्तकालय में है इन के पुत्र उदयनाथ कविंद औ पौत्र कवि दूलह बड़े महान कवि हुए हैं। (११) ठाकुर कवि प्राचीन सं० १७०० ठाकुर कवि को किसी ने कहा है कि वै असनी ग्राम के बंदीजन थे संवत् १८०० के करीव मोहम्मद शाह वाद- शाह के जमाने में हुए हैं औ कोई कहता है कि नहीं ठाकुर कवि कायस्थ बुंदेलखण्ड के बासी हैं किसी बुंदेलखण्डी कवि का क्यान है कि क्षत्र-
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