[१९] भयो गौतम तिन जा कहै अंजनी ताके सुत हनुमान ताके सुत मकरधुज तिन की माता मीन तेहि मीन की नाही जो तलफ बढायो है। सूर संबोधन कवि को स्याम जब पाय तर परो तब काहै तै ना कंठ लगायो । तात्पर्य पद पद में है कि मान छोड़ कृष्ण सो मिलो ॥१९॥ टिप्पणी 'सरदार कवि ने इस भजन में भूसुत, केवाच, शत्रु, बानर, नाथ राम, हित, भरथ, पिता, दशरथ, तिय कैकई, प्रिय, कलह । और नागसुता सुलोचना, पति इन्द्रजीत, पिता रावन, अरि रामचंद्र । सुरसुता, जमुना, अरि बल- देव, बंधु, कृष्ण, तात, बसुदेव अरि, कंस, भूषन क्रोध । सुरभीतम, गौतम, जा, अंजनी, सुत, हनुमान, सुत, मकुरधुज, ( मकरध्वज ) माता मछली अर्थ किया है। सरदार कवि ने यहां तो पूरा इस का अर्थ न किया परंतु आगे बढ़कर इस भजन को फिर भी लिखकर अर्थ किया है यथा । देषत तू कत भान बिडायो । भूसुतसत्रुनाथहित पितत्रिय प्रियहिय बचन डिढायो ॥ नागसुतापतिपितु अर आधो नाम सुबदन छपायो । सूर सुता अरि बंधु तात अरि भूषन बचन सवायो ॥ सुरभीतमजा सुतसुत की जन माता तलफ बढायो । सूर रोस पर जाइ उक्त कत कंठ न स्याम लगायो ॥ २९॥ उक्त सषी की कै तू नाइक के देष काहे मान डिढायो । भूसुत कवाछ सत्रु वानर नाथ सुकंठ हित राम पितु दसरथ प्रिया कैकई प्रीय कलह काहे को कियो अथवा हठ ॥ नागसुता सुलोचना पति इंद्रजीत पितु रावण रिपु रामचंद्र आधो चंद वदन काहे छपायो । सूरसुता जमुना अरि बलराम बंधू कृष्ण तात काम सत्रु सिव भूषन विष सो वचन काहे कहे । सुरभी गौतम मिलै गौ तम जा अंजनी सुत केसरी किसोर सुत मकरधुन माता मीन अब मछरी सी का तलफत है । सूर रोस की परजाइउक्त करके कंठ सो स्याम काहे न लगायो । यामे नाइका रोस कर पछतात सषी समझावत ताते कलहंतरता रचना से सब बात कहत तातें परजा- उक्त लच्छन ॥ दोहा । कलह करै पछतात सो। कलहंतरता जान । रचना बातन ते कहत, परजा उक्त प्रमान || २९ ।।' इस सूरसागर में एक भजन और भी सरदार कवि ने जोड़ा है उसका मूल टीका निम्न लिखित है। राधे तैं कत मान कियो री । धनहर हित रिपु सुत सुजान को नीतन नाहि दियो री ॥ बाजा पति अग्रज अंबा के भानु थान सुत हीन हियोरी । मा पितु
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