पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१९

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है तुम सहाय करो। सूर कहै कै सरस सरूप ते गर्भित हो दीपक की वृत चाहत हैं। अर्थ उक्त रहत यामें विपति ते बिपत दीपका वृत अलंकार । औ रूप गर्भ ते रूपभिता लक्षण ।। दोहा-पद आवृत जामे रहै, दीपकब्रत सो जान । रूप गर्भ ते कहत हैं, रूप गर्भिता मान ॥१॥१८॥ देषत तू कत मान डिढायो । भूसुत सत्रुनाथ हित पितु चिय प्रिय हिय बचन डिढायो॥ नागसुतापतिपितुअरि आधी नाम सु वदन छपायो । सूरसुता अरिबंधुतातअरि भूषन बचन सवायो॥ सुरभीतमजासुतसुत की जनु माता . तलफ बढायो। सूरस्याम जब परी पांय तर तब किन कंठ लगायो ॥ १६ ॥ देषत इति देषत तू मान काहे षडो कियो । भू सुत वृक्ष ताकी शत्रु कुठार ताको नाथ परसराम ताको हित महादेव ताको पितु ब्रह्मा ताकी त्रिया सरस्वती ताको प्रिय ब्रह्मज्ञान विचार सो आपने ही में डिठायो कहे डिढ कियो है । अर्थ यह सब सो निर्वेद । अथवा भू सुत मंगल ताको शत्रु बुध ताको नाथ सूर्य ताके हित चंद्र ताके पितु अत्री ताकी तिया अनसुया ताको प्रिय बिराग कहै प्रेमरहित सो आपनो हिय डिढायो है कहै मजबूत कियो है अथवा चंद्र पितु समुद्र ताकी स्त्री नदी ताको प्रिय टेढ़ी चाल सो अपने हिए में डिढायो मजबूत कियो सूरसुता जमुना ताको अरि बलभद्र ताको बंधु कृष्ण तात कहै पुत्र प्रद्युम्न ताके अरि दुर- बासा वाको भूषण क्रोध तेरे दुरवासा ते सवायो है नागसुता सुलोचना ताको पति मेघनाद ताके पितु सवन ताके अरि रामचन्द्र ताको आधो नाम चंद्र सो चंद्रवत बदन छपायो है । सुरभी कहै नौ औ तम दूनो सो