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सर्व रात्रि इसी शोच में नहीं सोये प्रातःकाल अपने सिरहाने यह पद
लिखा हुवा देखि सूर जी के आगे पढ़ा॥ आवत बने कान्ह गोप बालक
संग नैचुकी खुर रेनु छरित अलकावली॥ सूर जी जान गये कि यह कर-
तुति किसी और ही कौतुकी की है बोले अपने बाबा की सहायता लीनी
है। इन की गिनती अष्टछाप में है अर्थात् ब्रज में आठ ८ बड़े कवि हुए
हैं जैसा तुलसीशब्दार्थप्रकाश ग्रंथ में गोपालसिंह ने ब्यौरा अष्टछाप का
लिखा है इस भांति से कि सूरदास १ कृष्णदास २ परमानंद ३ कुंभन-
दास ४ ए चारों वल्लभाचार्य के शिष्य औ चतुर्भुज ५ छीतस्वामी ६
नंददास ७ गोविंद दास ८ ए चारों बिट्ठलनाथ बल्लभाचार्य के पुत्र
के शिष्य अष्टछाप करि कै विख्यात हैं कृष्णदास जी का बनाया हुवा
प्रेमरसरासग्रंथ बहुत सुंदर है।
(२८) छेमकवि २ बंदीजन दलमऊ के सं॰ १५८२ ए कवि हुमाऊं-
बादशाह के इहां थे।
(२९) अमृतकवि सं॰ १६०२ अकबर बादशाह के इहां थे।
(३०) खानखाना (नवाब अब्दुलरहीम खानखाना बैरमखां के पुत्र रहीम
औ रहिमन छाप है। सं॰ १५८० ए महाविद्वान अरबी फारसी तुरकी
इत्यादि यामनीभाषा औ संस्कृत ब्रजभाषा के बड़े पंडित अकबर बाद-
शाह की आंख की पुतली थे इन्हीं के पिता बैरम की जवांमरदी औं
तदबीर से हुमायूं को दुबारा दिल्ली का राज्य प्राप्त हुवा खानखाना जी
पंडित कवि मुल्ला शायर ज्योतिषी और सब गुणवान मनुष्यों के बड़े कदर-
दान थे इन की सभा रात दिन विद्वज्जनों से भरी पुरी रहती थी संस्कृत
में इन के बनाए श्लोक बहुत कठिन हैं औ भाषा में नवोरस के कवित्त
दोहा बहुत ही सुंदर हैं नीति संबंधी दोहा ऐसे अपूर्व हैं कि जिन के
पढ़ने से कभी पढ़नेवाले को तृप्ति नहीं होती फारसी में इन का दिवान
बहुत उमदा है वाकियात बावरी अर्थात् बावर बादशाह ने जो अपना
जीवनचरित्र तुरकी जबान में आपही लिखा है उस्को इन्होंने फारसी
ज़बान में तर्जुमा किया है ७२ वरष की अवस्था में सन् १०३६ हिजरी
में सुरलोक को सिधारे।
- श्लोक—आनीता नटवन्मया तवपुरः श्रीकृष्णया भूमिका।
- व्योमाकाशखखांवराब्धि वसवस्त्वत्मीतये ऽद्यावधि॥
- प्रीतिर्यस्य निराक्षणेहि भगवन्मत्मार्थितं देहिमे।