[ २०५ ] ए महाराज करौली के राजा स्वामी विट्ठलनाथ जी गोकुलस्थ के शिष्य शे अछाप में इन का भी नाम है। (१९) जीवन कवि सं० १६०८ इनके कवित हजारा में है। (२१) ताजकवि सं० १६२२ हजारा में इन के कवित्त हैं। (२२) होलरायकवि बंदीजन होलपुर जिले बाराबंकी सं० १६४० ए महान कवि अकबर के दरबार तक राजा हरिवंशराइ दिवान कायथ बदरकाबासी के वसीले से पहुंचे औ एक चक पाइ उसी में होलपुर नाम ग्राम बसाया एक दिन श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी अयोध्या से लौटते समय होलपुर में आए होलराय ने गोसाई जी के लोटा की प्रशंसा में कहा- दोहा-लोटा तुलसीदाल को, लाख टका को मोल । __ तब गोसाई जी बोले- दोहा—मोल तोल कछु है नहीं, लेहु राय कवि होल ॥१॥ होलराइ ने उस लोटा को मुर्ति के समान अस्थापन करि उस्के ऊपर चबूतरा बांधि पूजन करते रहे हम ने अपने आंख से देखा है कि आज तक उस की पूजा होती है इस होलपुर में सेवाय गिरधर औ नील- कण्ठ इत्यादि के कोई नामी कवि नहीं हुए इन दिनों लछिराम औ संत- क्कस ए दो करि अच्छे हैं यह गाउं आज तक इन्हीं बंदीजनों के नंबर में हैं। (२३) खेमकवि २ ब्रजवासी सं० १६३० रागसागरोद्भव राग- कल्पद्रुम में इन के पद हैं। एक खेम कवि बुंदेलखंडी है। (२४) जोधकवि सं० १५९० अकबर बादशाह के इहां थे। (२५) जोयसीकवि सं० १६५८ इन के कवित्त हजारा में हैं। (२६) चंदसखो ब्रजवासी सं० १६३८ इनके पदराग सागरोद्भवमें हैं। (२७) कृष्णदास मोकुलस्थ वल्लभाचार्ययके शिष्य सं० १६०१ इन के बहुत पद राग सागरोद्भव में लिखे हैं औ इन की कविता अत्यंत ललित औ मधुर है ए कवि औ सरदास औ परमानंददास औ कुंभनदास चारों श्रीबल्लभाचार्य के शिष्य थे कृष्णदास जी की कविता सूरदास की कविता से मिलती थी एक दिन सूर जी बोले आप अपना कोई ऐसा पद सुनावो जो हमारी काव्य में न मिलै सर कृष्णदास जी ने चारि पद सुनाये उन सब पदों में सुर जी ने चोरी अपने पदों की सावित किया तब कृष्णदास जी ने कहा काल्हि हम अनूठे पद सुनावैगे ऐसा कहि
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