पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[२१० ] सितून में लगी बादशाह तौ भागवचे अमरसिंह ने पांच और बड़े सर. दार मुगलों को मारि आप भी उसी जगह अर्जून गौर अपने साले के हाथ से मारे गये विस्तार के भय से मैंने संक्षेप से लिखा है। (४९) दील्ह कवि सं० १६२५ (५०)नरोत्तम दास ब्राह्मण बगडी जिले सीतापुर वाले सं० १६०२सुदामा- चरित्र बनाया है मानो प्रेम समुद्र बहाया है। (५१) चेतनचंद कवि सं०१६१६ राजा कुशल सिंह सेंगर वंशावतंस की आज्ञानुसार अश्वबिनोद नाम शालिहोत्र बनाया। (५४) पारक कवि सं० १६५५ । (५५)बिद्याक्षस ब्रजवासी सं० १६५०इन के पद रागसागरोद्भव में हैं । (५६)छीतस्वामी ब्रजवासी सं० १६०१ इन के पद बहुत राग कल्पद्रुम में हैं ए महाराज वल्लभाचार्य के पुत्र चिट्ठलनाथ जी के शिष्य थे इन की गिनती अष्टछाप में है। (५७) भगवत रसिक वृंदावननिवासी माधौदास जी के पुत्र हरिदास जी के शिष्य सं० १६०१ इन की कुंडलिया बहुत सुंदर हैं। (५८)छत्रकवि सं० १६२६ विजयमुक्तावली नाम ग्रंथ अर्थात् भारत की कथा बहुतही संक्षेप से सूचीपत्र के तौर से नाना छंदों में वर्णन किया है । (६०) गदाधर मिश्र ब्रजवासी सं० १५८० इन के पदराग सागरोद्भव में हैं इन का बनाया हुवा यह पद 'सखी हौं श्याम के रंग रंगी । देखि विकाय गई वह मूरति मूरति हाथ बिकी।' देख स्वामी जीव गोसांई जो उस समय बड़े महात्मा थे गदाधर भट्ट से बहुत प्रसन्न हुए। (६१)मानसिंह महाराज कव्वाह आमेरवाले सं० १५९२ ए महाराज कवि कोविदों के बड़े कदरदान थे. हरिनाथ इत्यादि कवीश्वरों को एक एक दोहा में लक्ष लक्ष रूपिया इनाम दिया इन्होने अपने जीवनचरित्र की किताब बहुत विस्तार पूर्वक बनाया है जिस्का नाम मानचरित्र है उसी ग्रंथ में लिखा है कि जब राजा मानसिंह काबुल की ओर अकवर के हुकुम से चले और अटक नदी पर पहुंच कै धर्मशास्त्र को बिचारि उत्तरने में शोच विचार करने लगे औ अकवर शाह को लिखा तब अकवर ने अह दोहा लिखा।- दोहा । सबै भूमि गोपाल की, तामें अटक कहा । जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा ॥१॥