पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२१२

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evyani [ २११ ] यह दोहा पढ़ि मानसिंह अटकपार जाय स्वामि कार्य में बड़ी वीरता करी॥ (६२) लालनदास ब्राह्मण दलमऊ वाले सं० १६५२ ए महाराज बड़े महात्मा हो गुजरे हैं इन के कवित् शांत रस मे हैं औ हजारा में भी कालिदास ने इन का नाम लिखा है। एक और मोतीलाल कवि हुए हैं। (६३) मोतीलाल कवि बांसी राज्य के निवासी सं० १५९७ गणेश पुराण भाषा में बनाया। एक और मोती लाल कवि हुए हैं। (६४) हरिदास स्वामी बूंदाबन निवासी सं० १६४० इन महाराज का जीवनचरित्र भक्तिमाल में है इहां केवल हम को काव्य ही का वर्णन करना अवश्य है सो संस्कृत काव्य में जयदेव कवि से इन की कविता कम नहीं है औ भाषा में इन के पद सूर औ तुलसी के पदों के समान मधुर औ ललित हैं इन्हों ने बहुत ग्रंथ बनाए हैं पर हमने इनकी कविता केवल वही देखा है जो रागसागरोद्धव रागकल्पद्रुम में हैं तानसेन को इन्ही महाराज ने काव्य औ संगीत विद्या पढ़ाया था । (६५) हरिनाथ कवि महापात्र बंदीजन असनीवाले सं० १६४४ ए महान कवीश्वर नरहरि जू के पुत्र बड़े भाग्यवान पुरुष थे जहां जिस दरवार में गएं लाखौं रुपिया हाथी घोड़े गांव रथ पालकी पाय लौटे श्रीबांधवनरेश राजाराम बघेले की प्रशंसा में यह दोहा पढ़ा । - दोहा । लंका लौ दिल्ली दई , साहि विभीषण काम । भये बघेलो राम सो, राजा राजाराम ॥१॥ इस दोहा पर एक लक्ष रुपिया इनाम पाया । औ राजा मानसिंह सवाई आमेरवाले के पास ए दोहा पदि दो लक्ष रुपिया दान पाया। दोहा। बलिबोई कीरति लता , करन करी दै पात ।। सींची मान महीप ने , जब देखी कुंभिलात. ॥१॥ जाति जाति ते गुण अधिक , सुन्यो न अजहूं कान। सेतु बांधि रघुबर तरे , हेला दै नृप मान ॥२॥ जब हरिनाथ जू ए रुपिया औं सब सामान लै घर को चले तो मार्ग में एक नागापुत्र मिला और उस ने हरिनाथ जू की प्रशंसा में यह दोहा पढ़ा। दोहा । दान पाइ दोई बढ़े , की हरि की हरिनाथ । उन बढ़ि ऊंचे पग किये , इन बदि ऊंचे हाथ ॥१॥ हरिनाथ ने सब धन धान्य जो पाया था सब इसी नागापुत्र को