पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२१५

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[ २१४ ] (८८)नारायणभट्ट गोसाई गोकुलस्थ ऊंच गांव बरसाने के समीप के निवासी सं० १६२० इनके पद रागसागरोद्भव में हैं ये महाराज बड़े भक्त थे वृंदावन मथुरा गोकुल इत्यादि में जे तीर्थस्थान लुप्त हो गये थे उन सब को प्रगट करि रासलीला की जड़ इन्हों ने प्रथम डाली है। (८९) तानसेन कवि ग्वालियर निवासी १५८८ ए कवि मकरंद पाडे गौड़ ब्राह्मण के पुत्र थे प्रथम श्री गोसांई स्वामी हरिदास जू गोकुलस्थ के शिष्य है काव्य विद्या को यथावत् सीखा सत्पश्चात् शेख मोहम्मद गौस ग्वालियरबासी के पास जाय संगीतविद्या के लिये प्रार्थना करी शाह साहेब तंत्रविद्या में अद्वितीय थे बरण मुसल्मानो में इन्हीं को इस विद्या का आचार्य सब तवारीखों में लिखा गया है शाह साहेब ने अपनी जीभ तानसेन की जीभ में लगाय दिया उसी समय से तानसेन गान विद्या में महानिपुण हो गए इन की प्रशंसा में आईन अकवरी में ग्रंथकर्ता फहीम ने लिखा है ऐसा गाने वाला पिछिले हजारा • में कोई नहीं हुवा निदान तानसेन दौलति खां शेरखां बादशाह के पुत्र पर आशिक है उन के ऊपर बहुत सी कविता करी तेहि पीछे दौलति खां के मरने पर श्रीवधिवनरेश रामसिंह बघेला के इहाँ गए ओं उहाँ से अकबर बादशाह ने अपने इहां बुलाय लिया तानसेन औ सूरदास जी से बहुत मित्रता थी तानसेन जी ने सूरदास की तारीफ़ में यह दोहा बनाया। दोहा। किधौं सूर को सर लाग्यो , किधों सूर की पीर ।। किधौं सूर को पद लग्यो, तन मन धुनत शरीर ॥१॥ तब सूरदास जी ने यह दोहा कहा । दोहा । बिधना यह जिय जानि कै , शेशन दीन्हे कान । . धरा मेरु सब डोल तो , तानसेन की तान ॥२॥ इन के ग्रंथ रागमाला इत्यादि महाउत्तम काव्य के ग्रंथ हैं। (९०)निपट निरंजन स्वामी सं० १६५० ए महाराज गोस्वामी तुलसी दास के समान महान सिद्ध हो गए हैं औ इन के ग्रंथों की ठीक ठीक संख्या मालूम नहीं होती पुरानी संग्रहीत पुस्तकों में सैकरों कवित्त हम -इन के देखते हैं हमारे पुस्तकालय में शांत सरसी १ औ निरंजन संग्रह २ -दो ग्रंथ इन महाराज के बनाए हुए हैं इन की कविता में बहुत बड़ा प्रताप यह है कि मनुष्य कैसाही काम क्रोध इत्यादि पासों से बद्ध होवै इन की वाक्य के श्रवण कीर्तन से निःसंदेह मुक्त हो जाये ।