____[ २१५ ] (९१)इंद्रजीत त्रिपाठी बनपुरा अंतरवेदी वाले सं० १७३९ औरंगजेब के नौकर थे। (९२) पृथीराज कवि सं० १६२४ हजारा में इन के कवित्त हैं ए कवि बीकानेर के राजा संस्कृत औ भाषा के बड़े कवि थे । (९३) लक्ष्मीनारायण मैथिल सं० १५८० ए कवि खानखाना के इहां थे। (९४) हरिकवि ए महान कवि थे इन्हों ने चिमत्कार चंद्रिका नाम ग्रंथ भाषाभूषण का टीका १ औ कविप्रियाभरण नाम ग्रंथ कविभिया का तिलक २ विस्तार पूर्वक बनाया है औ तीनौ काण्ड अमरकोश भाषा किया है।' (९५) बलिभद्र सनाढ्य उड़छेवाले केशोदास कवि के भाई सं० १६४२ इन का नख सिख सारे कवि कोविदों में महाप्रमाणिक ग्रंथ है औ भागवतपुराण पर टीका बहुत सुंदर किया है। (९६) बिट्ठलनाथ गोकुलस्थ गोसाई बल्लभाचार्य के पुत्र सं० १६२४ ए महाराज वल्लभाचार्य जी के पुत्र परम भक्तवात्सल्यनेष्टा के हुए हैं इन के सात पुत्रों की सात गादियां गोकुल जी में चली आती हैं इन की कविता पद इत्यादि बहुत से रागसागरोद्भव में हैं। (९७) विश्वनाथ कवि प्राचीन सं० १६५५ (९८) पदुमनाभ जी ब्रजवासी कृष्णदास पयअहारी गलताजी के शिष्य सं० १५६० इन के पद बहुत राग सागरोद्भव में हैं अर्थात् कोल्ह, अग्रदास, केवलराम, गदाधर, देवा, कल्यान, हठी नारायण, पदुमनाभ ए सब कृष्णदास जी के शिष्य, औ महान कवि हुए हैं औ अग्रदास के शिष्य नाभादास थे। (९९)प्रवीन राइ पातुरीउडछा बुंदेलखण्डबासिनी सं० १६४० इस बेश्या की तारीफ में केशौ दास जू ने कविप्रिया ग्रंथ की आदि में बहुत कुछ लिखा है इस्के कवि होने में कुछ संदेह नहीं इस्का बनाया हुवा ग्रंथ तौ हम को नहीं मिला केवल एक संग्रह मिली है जिस में इस के सैकरों - * मारकंडे कबि ने मुझ से यह कवित्त कहा था- जब ते सुनि हैं बैन तब तें न मोको चैन पाती पढ़ी नेकू सो बिलंब ना लगावेगो। लेकै जमदूत सो समस्त राजपूत आज आठ घड़ी आगरा में उद्धम मचाबैगो ।। कहे पृथ्वीराज प्रिया नेक उर धीर धारो चिरजीव राना ये मच्छन भगावेगो। ॥ मानको मरदि मान परवल प्रताप सिंह बब्बर को तडपि अकबर पै आवेगो १
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