पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२१९

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। २१८ १ चौपाई रामायण ७ कांड । २ कवितावली ७ कांड । ३ गीता- वली ७ कांड । ४ छंदावली ७ कांड । ५ बरवै ७ कांड । ६ दोहावली ७ कांड । कुंडलिया ७ कांड । औ सेवाय इन ४९ कांड के १ सतसई। २ रामसलाका । ३ संकटमोचन । ४ हनुमतबाहुक । ५ कृष्णगीतावली । ६ जानकीमंगल । ७ पारवतीमंगल । ८ कडकाछंद । ९ रोलाछंद। १० झलनाछंद । इत्यादि और भी ग्रंथ बनाए हैं अंत में बिनयपत्रिका महा विचित्र मुक्ति रूप प्राज्ञानंद सागरग्रंथ बनाया है चौपाई गोसांई महा- राज की ऐसी किसी कविने बनाय नहीं पाया और न बिनयपत्रिका की समान अद्भुतग्रंथ आज तक किसी कवि महात्मा ने रचा इस काल में जो रामायण न होती तो हम ऐसे मूरों का बेड़ा पार नहीं लगता गोसाई जी श्रीअयोध्या जी मथुराखंदावन कुरुक्षेत्र पराग बाराणशी पुरुषोत्तमपुरी इत्यादि क्षेत्रों में बहुत दिन तक घूगते रहे हैं सब से अधिक श्रीअयाध्या काशी पराग औ उत्तराखण्ड बंशीवट इत्यादि जिले सीता- पुर में रहे हैं इन के हाथ की लिखी हुई रामायण जो राजापुर में थी वह खण्डित हो गई है पर मलिहाबाद में आज तक संम्पूर्ण ७ काण्ड मौजूद हैं १ पत्रा नहीं है बिस्तार भय से अधिक हालात हम नहीं लिख सक्ते दो दोहा पर इन महाराज का वृत्तांत समाप्त करते हैं। दोहा । कविता करता तीनि हैं , तुलसी केशव सूर । *

  • बाबू रघुनाथसिंह ने जो दोहे मुझे दिये थे उस से मालूम हुआ कि ११७

कबि सूरदास के समय में वर्तमान थे। इन में से दो तीन कवि को छोड़ कर सभों का नाम "शिवसिंह सरोज" में मिलता है पर इस से (शिवसिंह सरोज) जो मैंने समय लिखा है सब का समय सूरदास के समय से नहीं मिलता। सूर- दास का समय १६४० संवत् "शिवसिंहसरोज" में लिखा है और सरदास जी ने स्वयं " साहित्यलहरी " नामक पुस्तक में साहित्यलहरी के बनाने का समय १६०७ लिखा है । और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने लिखा है कि संवत् १६२० के लगभग में इन्हों ने शरीर त्यागा । अब यदि सूरदास जी के जन्म से मरण प्रयंत १२५ वर्ष रख लेते हैं तो भी संवत् १९०५ से के कर १६२० तक होता है अब यदि संवत् १७०० से अधिक के समय के कवियों को सूरदास जी के सामयिक रघुनाथ सिंह के दोहे और " शिवसिंह सरोज" के अनुसार ठहराया गया है यह यथार्थ में ठीक नहीं है । अब सोचना