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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२२१

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[ १२० ] अन के कवि खद्योत सम , जहं तहं करत प्रकाश ॥२॥ _ मीराबाई प्राणत्याग करि रसिकबिहारी गिरिधारी के नित्यबिहार में जाय मिली इन दोनों मंदिरों के बनाने में नव्वे लाख रूपिया खर्च हुवा था।" मीराबाई के विषय में 'तारीखं तुहाए राजस्थान में मौलवी मुहम्मद उबैदु- ल्लाह फरहती ने लिखा है। "सांगा को इस शिकस्त का निहायत रंज हुआ, वह इसी साल के अन्दर मेवाड के पहाडी इलाके में मौत से या किसी के जहर देने से इन्तिकाल कर गये, और उन के साथ मेवाड़ की तरक्की खत्म हो गई; अगर वह जिन्दह रहते, तो दोबारह लड़ाई में किस्मत आजमाई करते । यह महाराणा जोरावर, खूबसूरत और दर्मियानी कद के आदमी थे। इन महाराणा के दो बेटे उन के साम्हने गुजर चुके थे, जिन में से बड़े भोजराज के साथ मेडतिया राठोड जयमल्ल की रिश्तहदार बहिन मीरांबाई, जिस के फकीरानह भजन अवाम में मशहूर हैं, व्याही गई थी। कर्नेल टाड ने गलत तौर पर उसकी शादी महारणा कुम्भा के साथ लिख दी है, जो सांगा जी के दादा थे। एशियाई मुल्कों में जियादह ब्याह करने से आदतें खराब और जिस्म जईफ़ होने के सिवा, हर एक औरत अपनी औलाद की बिहतरी के वास्ते हर तरह की तबीर करना चाहती है, जिस से बहुत खराबियां पैदी हैं । इस लिये कर्नेल टाड ने ख़याल किया है, कि महाराणा सांगा दोहे के खानदान में से किसी ने जहर दे दिया।" अब पं० बलदेवे और पं० गनपतलाल चौबे की बात पर विशेष ध्यान दिया जाय तो इन्हें शुद्ध भरम होगया है जरा भक्तमाल भी पढ़े होते तो सूरदास कितने हुए हैं मालूम हो जाता, फिर जिस सूरदास का सूरसागर बनाया है व्यर्थ उन में और सूरदाप का हालं न लिखते ।