पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२४

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[ २३ ] गुन लाल कहै कृष्ण उन को अनादर करने से हानि है जो सो करके तने लियो है याते निदरसन अलंकार लछन । जो सो आन आन गुन ठाने । तहाँ निदरसन मुकबि बषाने । निदरसन पद असलेष है ॥ २१ ॥ निस दिन पंथ जोहत जाइ । दधि को सुत सुत तासु आसन बिकल हो अकुलाइ ॥ गंधबाहनपूत बांधव तासु पतनी भाइ। कबै द्रग भर देषवो जू सबो दुष बिसराइ ॥ अजा भष को हान हम को अधिक ससि मुष चाइ । सूर प्रभु बितरेक बिरहिन कब देषैहै पाइ॥२२॥ उक्त नायका की सपी प्रति निस अरु दिवस(दिन)को पंथ जोवत(देषत)जात है। दधिसुत कमल ताको सुत ब्रह्मा ताको आसन हंस हमारो हंस जीव अकुलात है। सुगंधवाहन पवन पुत्र भीम बंधु पारथ पतनी सुभद्रा भाई (बंधु) कृष्ण कब नेत्रन से देखिहौं। सब दुख विसराइ कै। अजा भष पाती की हान है हम को शशि तें जिन को मुष अधिक है तिन की चाहना है । सो सूर के प्रभु ते बितरेक जुदी है । विरहनी ताको तिन के पद कब दिषाइ है । इहां नायक बिदेस ताते प्रोषितभर्तकानायका ससि ते अधिक मुष याते बित- रेक अलंकार बितरेक पद श्लेष लच्छन । चौपाई-प्रोषित पति परदेस वषानो । वितरेक उपमे वड मानो ॥ सपोरी सुन परदेसी की बात । अधर बीचदै गये धाम को हरि अहार चलि जात ॥ ग्रह नछत्र अरु बेद अरध कर को बरजै मुहि पात । रवि पंचक संग गये