पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[२५] युग के बराबर बितती है और तिस पर हर शिव रिपु काम वह घात करता है । नखत कहिये नक्षत्र को उस का तात्पर्य यहां २७ से है और ग्रह नव और वेद चार अब २७+९+४=४० इस का आधा बीस अर्थात् विष यह खाते बनता है । मघ कही मघा नक्षत्र उस से पांचवें चित्रा अर्थात् चित को सांवरे ले गये ताते जीव अकुलाता है । सूरदास कहते हैं कि आवने की आशा से प्राण है नहीं तो जाता रहेगा। _____बीती जामिनी जुग चार ।जात वेद सुमोहि मारी बीर भूषन जार ॥ दनुज पति की अनुज प्यारी गई निपट विसार। नागरिपुभष लगत नाहीं हो रही पच- हार ॥ कपट हीन न मीन एरी मरन बिछुरत त्यार । सूर करत बिनोक्तभूचर चरन करत पुकार ॥ २४॥ उक्त पूर्ववत् के जामिनी रात्रि चार जुग तौ बीती । जात वेद अगिन मोहि जारि मारी है । बीरभूषन करवारे चंदनो दनुजपति रावन ताको अनुज कुंभ- कर्ण ताको प्रिय निद्रा निपट बिसर गई है। नाग को रिपु बाघ ताको भष पल (मांस) सो नाहीं लगत है मैं कपट हीन मछरी नाहीं है जो मित्र के बिछुरे ते मरवे को त्यार हो जात है । सूर करत यामे बिन उक्त के भूषन गहना का उक्ति नाही चलत है भूचर देवक (दीवक) ताको चरणहार मुर्गा काहै नाहीं पुकारत पात काहै नाही होत या विषै नाइका पूरब बिनोक्त अलंकार है। मीन जो प्रस्तुत सो बिना कपट तें सोभा पावत है लक्षण । चौपाई-हीन पीन प्रस्तुत बड़ होई । कहत बिनोक्त अलंकृत सोई ॥ टिप्पणी-बाबू परमेश्वर सिंह इस पद में नाग का अर्थ सांप करते और उस का भख मांस और मांस का अर्थ पल लगाते हैं । अथवा नाग सर्प रिम नकुल उस का भख मांस फिर मांस का अर्थ पल अर्थात् क्षण लगाते हैं।