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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२९

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उक्त नाइका पूर्व । पलट वरण राधा ते धारा (ताकी) जा लक्ष्मी पति विष्णु हित शिव रिषु काम के त्रास तें परी रहत है कछु कहत नाही उर्द्ध स्वासा लेत है। बात नाम पवन जान रथ आदि अंत ते पथ ताकी रिपु जमुना पति कृष्ण पत्नी जामवंती पितु रिछ रिछ नाम नषत ताके पति चंद ताको देष जरत है। तरनिजा जमुनातट के नाहीं ताकत (देषत)। सूरस्याम घन मिले ते ग्रीषमको परकर सामा- न्य वाके पास तैं जाइ। इहां काम तपनचंद तपन तरनिजा तपन ग्रीषम को समा- जताकी तपन मिटावनहार घनस्याम विसेषन है ताले परकर ताको लच्छन । चौपाई-साभिप्राय बिसेषन होई । परकर ताहि कहै कवि लोई ॥ प्राननाथ तुम बिन वजवाला है गई सभै अनाथ । व्याकुल भई मीन सी तलफत छन छन मोजत हाथ ॥ ग्रह पति सुत हित अनुचर को सुत जारत रहत हमेस । जलपति भूषन उदित होत ही पारत कठिन कलेस ॥ कुंज कुंज लषि नयन हमारे भंजन चाहत प्रान । सूरदास प्रभु परकर अंकुर दीजै जीवनदान ॥ २७॥ (उक्त नाइका पूर्ववत् हे प्राननाथ जब तें तुम गये तब तें वृजवाल अनाथ होइ गई । व्याकुल मीन सी तलफती हाथ मींजती है।) ग्रहपति सूर्य सुत सुकंठ हित राम अनुचर हनुमान (हनुमंत) को सुत मकरध्वज नाम कहे काम हमेस जरावत है। जल कही गो गो नाम नंदी पति शिव भूषन चंद उदित होत कलेस पारत है। कुंज कुंज देष के नयन जो हमारे है सो प्राण भंजन चाहत है । हे सूरदास के प्रभु परकर जो बीर है । दाह ताके हे अंकुर