देत पुस्तें मिलाकरनै उपालभ भी होइ सकत है परहास मिले यातें । रतना- की अलंकार '। रनावल प्रस्तुती अरथ क्रम तें औरै नाम ॥ ७० ॥ एक स्थान पर और भी इस पद को सरदार कवि ने लिखा है उसे भी मूक अर्थ समेत नीच लिखा जाता है। - भई है कहा प्रथम सी बाल । दुती सूर मिलि सुता त्रिती हित चाहत तोहि गुपाल ॥ चौथ सिंगार पंच करि कटि बुधि करी षष्टई चाल । सप्तम तोल आठ सो मारो फिरत नाथ बेहाल ॥ नव तो छोडि और नही ताकत दस जिनि राषो साल । एकादस ले मिलो बेगहुँ नानौ नवल रसाल। द्वादस सो तलफत पियप्यारो सूर समारो लाल ॥ ८४ ॥ उक्ति सषी की मानिनी प्रति । पूर्ववत् अलंकार प्रथमा वन है । बाला प्रथम सी या बारहो रास जानो प्रथम मेंष सी का भई है । दुती वष सूर मिले बष- भानुजा त्रितीय मिथुन ते मिलन । चौथे करक सिंगार करिके पंचम सिंह कटि छठई कन्या कैसी बुधी सतई तुला तराजु तोल अठई बिछी को सो मारो नवम धन तो सी अवर नहीं है । दसम मकरं नाम मान एकादस कुंभ कुचकुँ ले मिलो बारहो मीन सो तलफत है तुम बिन प्रीतम ताको सम्हारो ॥ ८४ ॥ ____बुज में आजु एक कुमार। तपनरिपु चल तासु पतिहित अंत हीन विचार॥ सचीपतिसुतसवुपितु मिल सुता बिरह विचार । तुम बिना बृजनाथ बरषत प्रवल आंसू धार ॥ बाल गोप बिहाल गाई करत कोटि पुकार । राष गिरधर लाल सूरज नाथ बिनु उद्धार ॥ ३० ॥ कुमार कठिन मार अथवा काम बैरी है रहा है तपन कहे सूर्य तिन रिपु मेघ तिन को चल वायु ताको पति इंद्र ताको हित प्रिय रंभा ताको अंतवरण भा कहे सोभा । तासो हीन विचार कहै विचारो सचिपति इंद्र सुत जयंत ताको शत्रु राम पिता दशरथ ताकी सुता संता कहे सति
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