पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/४४

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निरषि अदभुत रूप । सूर अनसंग तजत तावत अयो पति का खूप ॥३१॥ ___ उक्ति पूर्व । बन ते नंदकिशोर आवत मोह ते दिन अंत राति जंगमन चरणन ते शब्द सुनावत या पद में (आगत पति का नाइका लच्छन ।) असंगत अलंकार आगतपतिका नायका लच्छन । दोहा-कारज आन सुआन हे, कारज होत असंग । ___ पति आवत के होत है, आगतपतिका रंग ॥१॥३९॥ जवते होहरिरूप निहारो।तबतें कहां कहोरी सजनी लागत जग अंधियारो॥ तमहरिसुत गुन आदि अंत कबि का मतिवंत बिचारो। मेरे जान अनीतन इनको कीनो बिध गुन वारो ॥ पचर बिलौना पोर आदि मिल मुष सम बदन सम्हारो । लाग गया याहोतें इनको रथ पाटुजतिय वारो॥ पूषनसुत सहाय सि- वआनन कालष नैन विचारो। सूरदास अनुराग प्रथमतें विषम बिचारविचारो।४। जब ते हम हरि रूप देपो तव ते जग अंधेरो लगत है तमहर सुत काजर गुन कहे (को नाम) दाम आदि अंत ते काम भयो सो कवि जो काम ऐसो रूप वरनत (कहत) ताते इन को ब्रह्मा ने अनीत अनयन करोष आकास षिलौना चंग पीर दूध आदि बरन ते चंद जो इन के मुष समान भयो ताते याके रथया कहे सुन्न दुज कहे एक सब बिपरीत ते लिषिए अंक वाम्गति है तो