पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४४ दशरथ होत है ताकी तीया कैकई ताको लगो कलंक चंद कलंकित होइ गयो पूषनसुत सुग्रीव सहाय रिछ शिवआनन पंचवां (पंच पांचवों) नक्षत्र मृग- सिरा मृग नेत्र देष का बिचारो सूरदास प्रथम अनुराग में विषम विचार इन को जानो अथवा प्रथम अनुराग भयो तातें या पद विषे पूरबा अनुराग अरु कृष्ण स्याम है तिन को उज्जल कारज में बरनो याते विषम अलंकार . कवि को अभिप्राय लच्छन । दोहा-कारन काज विरोध रंग, विषम कहावै साई । प्रथम भयो अनुराग ते, है पूरबई सोइ ॥ परंतु या पद में अदभुत के हेत कियो ताते हतोतप्रेक्षा है ॥४०॥ __ सजनी नंदनंदन आज। परक ठाढो हेरि आई हरष बाढो साज ॥ ताल नव को ओर चितवत लेत है मन मोल। चमक नैना चलत चहुंदिस कहत अमृत बोल॥ टकमु लटकन देष सजनो करत मुष बिपरीत । सूरस्याम सुजान सम बस भई है रस रीत ॥४१॥ ___ उक्ति नाइका की सपी प्रति कै हे सषी आज नंदनंदन हों परक में ठाढो दिषं (हेर) आई है ताल पलटें तें लता की (बोर)नव ते वन की वोर चित- वत है मन मोल लेत हैं चमकनाने नैना चलत है चारो वोर टकमु पलटें तें मुकुट होइ है इनको विपरति करे सुष है सूरस्याम सुजान मेरे बरोबर कहै करत रसरत अनुराग पूरब अलंकार सम यथायोग को संग ॥ ११ ॥ __बंसीबट के निकट आजहोनेक स्याम मुष हेरो। नटनागर पट पै तबही ते लटक रहो मन मेरो॥ सिवरिपुतिय घट