पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/५१

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[५०] चालीस कोमन सो मन ने हमारो तन प्रणरोपके बेचौता तन की हान कैडर संका (भयो चाहत है माननाथ बिन ताकी संका करिके अरु ए जो कारन ताको माला ताको पहिरावहु । इहां पान हान के) संचारी कारन ते कारज होत गयो तातें कारणमाला अलंकार है लच्छन । दोहा-वस्तु भावती हान तें, डर सो संका मान । कारन काज परंपरा, कारनमाला जान ॥ १॥४॥ बयरोचन सुत को सुभाव सुन जबही जान पठाई। तब ही तव संग चंद भाग गौ सब सुष देषन वाई ॥ चंद भाग संग गयो मुआषररिपु सब सुष बिसराई। एक अबल करि रही असूया सूर सुतन कह चाई ॥४६॥ उक्ति नायका सषी प्रति वैरोचनसुत सुभाव सपी जब तोहि पठाई तब चंद भाग मन गयो जब मन गयो तब सुआषर सुवरण रिपु सुहाग गयो एक अबल तन रहै या असूया संचारी एकावली भूषन लच्छन । दोहा-अनसहिबो पर भले को, तहां असूया होइ। , ग्रहत मुक्त की रीत तें, एकावलि कबि लोइ ॥ १॥ नायका परसंभोग दुषता को लच्छन पूर्ववत् ॥ १९॥ राधे आज मदनमदं मातो। सोहत सुंदर संग स्याम के घरचत कोट काम कल थाती ॥ अंतरिच्छ श्रीबंध लेत हरि त्योंही आप आपनी छाती। ग्रीषम पवन लेत हरि हरि करि ग्रीषम पवन लेत.