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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/६२

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[ ६१ । समु.ये। दधिसुत रिपु भषमुत सुभाव पै इत उन मोहि बोलाईगिरिजापति भष बीच को न सो वैगै मोको माई॥ भूसुत सबथान किन हेरत लषत मोहि मन मारें । मुनिरिपुपुत्रवधू किन वैरिन मोकों देत सवारै। तीन मुन इक करी होइ के तितनै मुषमुष पावै॥ नंदनंदन की कीरत सूरज तो संभावन गावै ॥६३॥ ra ३ उक्ति नायका की सषी प्रति के फलसूचक ग्रह ग्रह नाम घर का कहिके जाइए जो यह विपत हम पैपरी है सोका कहि को समझाइये दधि- सुत चंद रिपु राहु भष सूर्य पुत्र करण सुभाव सषी ताके हाथ मोकों बुलाई गिरजापति भष बिष बीच में मोको को हो गयो भूसुत केवाच शत्रु बानर गेह वृक्ष तो हेर मोको मनमारे कहा देषत है मुनिरिपु काम सुत अन- रुष तीया ऊषा मोको दिषाउ तिन सुन्न ते एक पर करे हजार होत है करी नाम हाथी ताको नाम नाग जो हजार सेस होहि अरु एक हजार मुष पावों तो नंदनंदन की कीरत गावै यामें संभावना अलंकार बिषाद संचारी लच्छन । दोहा-ज्योंय्यों त्योय्यों होहि तो, संभावन चित जान । ___होइ मलिन मन दुष ते, जंह बिषाद चित आन ॥१॥६३॥ - सोवत कुंजभवन में दोउ। श्रोबष- भानकुमारिलाडिलो नंदनंदन बुज- भूषन सोड़ ॥ हाथनपितुसुतहित