। ७३ ] उक्ति सपी की (कै)आजु जोर नाम बल उतपल कमल आदि बरन ते बक भयो ताके उर तें कान्ह निकस आयो बीच मधि (मद्ध) निस जामिनी आदि बरन तें मजा भयो सो अंग मों लगो है लेप सो वेदपाठी नाम स्रोत्री द्रग नाम नयन सोई रीत नाम प्रथम की रीत ते स्रोन रुधिर के छीटी (छींटा) बहुत लगे हैं ताते मोकों नाहीं समुझ परे वे डीठ बांसुरी के बजाये जान पाय के वा के पुत्र नाही है या पद में बिभस्त रस उनमी- लत अलंकार है लच्छन । दोहा-ग्लान बिंग ते जानिये, है बीभस्त सरूप । ____ उनमीलत साद्रस तें, भेद फुरै कवि भूप ॥१॥७७॥ आज चरित नंदनँदन सजनो देष। कीनों दधिसुतसुत से सजनी सुंदर स्याम सुभेष ॥ सारंग पलट पलट छबि दोई लै गौ आप चुराय । सोई सब के घर घर आई जस के तस सुष पाय ॥ को यह कौतुक करै और सुन समुझ आप निज बात। सूरदास सामान्य करन को येही बलित लषात ॥ ७८॥ उक्त सपी की (के) हे सषी आज नंदनंदन को चरित देष हे सजनी दधिसुत कमल सुत ब्रह्मा सोजो कीनो है सारंग पछी लवा ताको पलटे तें बाल अरु छव पलटे तें बछ अर्थ बाल बक्ष दोऊ चुराय लैगयो सो घर घर जस के तस आये यह तमासो ओरको करै (और को कर सकत) या बात स- मान्य करने को यही है या पद में सामान्य अलंकार अदभुत रस है लक्षन । दोहा--जो सास सामान ते , भेद फुरै तब मान । . अचरज विंग प्रधान तें, अदभुत रस पहिचान ॥ १ ॥७॥
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/७४
दिखावट