पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/७५

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[७४ ] जमुमत आज बैठ के आगन अपनी लाल लावै। चूम चूम मुषंचपल चित करिआनन आप मिलावै॥ सारंगसुत प्रो- तम सुत रिपुरिपुरिपुरिपु माल बनावै। पिंडप्रधान भूमपति सुत गुर भाषित सरस सुनावै । भूषन पति भष जा पति बाहन हित बिचार चित गावै॥ धनहरि हित रिपु सुत सुष पूरत नैनन मद्द लगावै। धौरी धूमर काजर कारी कहि कहि नाम बुलावै ॥ लालन कर उत पल के कारन सांझ समे चित लावै। सूरज करबिसेष आलंकृत सब सुष सान तुलावै ॥ ७६॥ उक्ति सषी की सषी प्रति (जसुमत आज अपने लाल को पिलावत है मुष चूमत है चित चपल कर के मुष मिलाव तवै) सारंग समुद्र सुत कमल प्रीतम सूर्य सुत सुकंठ रिपु बालि रिपु रामरिपु दसानन रिपु देव नाम सुमन की माला बनावत है पिंड प्रधान भूम कहे गयापति विष्णु सुत लवकुश गुर बालमीक(तिनकी)भाषित रामकथा सुनावत है भूषनमुद्रापति अगस्त भष स- मुद्र सुता कुमदिन पति चंद वाहन मृगहित राग गावत है धनहर चोर हित अंधकार रिपु दीप सुत काजर नैनन में लगावत हैं. धौरी (धूमर काजर ए गौ के नाम हैं तिन को बुलावत हैं) आदिक गैया के नाम कहि बुलावत