पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/८०

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बनाई॥ ले निषेद दरस निज कर ते सनमुष दयो दिषाई ॥ सुछ बसन नय उर के रस से मिले लाल मुष पोछो। सूरस्याम तन चितें फेर मुष पिहितभाव बल मोछो॥८॥ उक्ति सपी की (कै) हे सपी हरि को अंतरिछ नाम अधर जब देषो (दिगज सहित) दिगज नाम अंजन सहित तब राधिका ने अपने हृदय में धीरज धरो बहुत श्रेय नाम महावर कुंस नाम भाला अग्र भाल अर्थ महावर भाल में नीतन नाम नयन में (सोई) महावर रंग अरुन रेसम करी नष ताको छद उर में मूरष निरगुनी माला पछिन ते कंकन पीठ मासन पलन में सिंगाररस पान कर (को) संसोहत है तब यह जुगत बनाई निषेद आकर दरस ते दरस दोइ मिल आदर्सनाम दरपन दिषायो सुछ सपेद बसन नय नदी उर रस जल अर्थ पानी सो भिजाई कपरा लाल को मुष पोंछो स्याम ओर चितै कै मुष फेर पिहित अलंकार भाव सबलता देषाई लच्छन । दोहा—पिहित छिपी पर बात कों, आप जनावै भाव । . बहुत भाव ते होत है, भाव सबलता ताव ॥१॥८३॥ यह सामरी सषी मेरे हित चक्रवा- क पढि आई । जस माता सुच सील जान के सिषवन हेत पठाई॥ जानत है बुधवंत बेद बसु तसन कहूं सुन पैहै। या संग रहत सदा सुच सजनी सब सुष सोभा पैहै ॥ चेली करत मोहि कहि लीनी अवर न करहों चेली। तुम