[ ८३] ___माधी कीजिये बिश्राम। उदौ चाहत लेन बैरी करन पितु हितु जाम ॥ धुलो चाहत सरन सारंग देत सारंग दान । सुरा सेवन करन लागे बिन लष सुष हान॥ निसाचररिपु हीन खैहै गये घर सब कोइ। विशाबाहन सैन दस दिस लगे बोलन सोडू॥ पाडूगे नंदलाल संगी देषिये नंदलाल। मोल की बिधु कीजिये उर बिन गुनन की माल ॥ आप के गुन कहन कारन आपही के नेक। सूर डौंडी देत सिर पर लोक उक्त अनेक ॥ ८८॥ ___उक्त नाइका की नाइक प्रति माधो या गाली संयुक्त है तुम माता के पति हो अरु उदो करण पिता सूर्य करो चाहत है सरन में सारंग जो कमल है ते सारंग सुगंध दान देन चाहत है पुल के सुरा बारुनी पच्छिम दिस ताको सेवन दुजराज चंद करण लागो है सुष की हान देष के निसाचर राकस वैरी रिछ तारे छव ते हीन होइ घर गये विष्णुवाहन गरुड सैना पछी बोलन लगे (हे) नंदलाल आप आये दलाल न लाये यह जो बिन गुन की उर में माला है ताको मोला कैसै होइ (होहि) अरु आप के जो गुन है तिन को गुन तो आपही के नैन कहत है डौडी दै दै को यह लोक उक्त समुझो लोकोक्त अलंकार वोधा वि बिंग है। चौपाई-लोक कहावते जामें होई । लोक उक्ति जानो कबि लोई ॥१॥८८॥ टिप्पणी-सरदार कवि ने मूल में नेक के स्थान पर नैन और अनेकन के स्थान पर ऐन लिखा है।
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