पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/८६

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[ ८५ ] सीचो।तजत न स्वाद आपने तन को जो विध दोनो नीचो॥ छेकउक्त जहँ दुमिल समज के का समुझावत नीठो। मिसिरी सूरन भावत घर की चोरी को गुड मीठो॥३०॥ __उक्त नाइका की सपी सो कहि नाइक को सुनावत है कै हे सजनी तोको को(ताको सब समुझाओ)समझावै परंतु जाके तन में लाज नाहीं सो मन तें नाहीं संक मानत है सुन दै तीन लिङ्ग तो तीस हो पाछिली सुध(सुद)नाम याद आदि बरन ते तीया सो आपनी छोड देत भूधर परबत समर रन आदिती (आद ताते)पर तीय सुनत ताको तन वली होत है दानव कुंभकरण प्रिया नींद(निद्रा) सेर चालीस मन आद बरण ते नीम सुरभी रस गुड घी ते सींचै परंतु अपनी करवाई जो बिध दई ताको नाहीं छोडत यह छकोक्त दुमिल कूट है तुम का समुझावती है ताको घर की मिश्री नाहीं भावत जाको चोरी को गुड मीठो लगत है क्षेकोक्ति लक्षण । चौपाई-लोकोक्ति में जुक्त वनावै । सो छेकोक्ति सूर ठहरावै ॥१॥ अरु दो बस्तु मिल एक बस्तु भई ता दुमिल कहावै ॥ ९० ॥ जलज नीतन हों आज निहारी। मोरन के सुर सरस सम्हारतपय सुरतिया बीच रुच कारे॥ नृतकार उतिम बनाइ बानिक संग चंद न आवै। मास भाग सिर लसत सुरन के देषत झुकझुक जावै॥ सपन और बरही मुष कर करसजनी