पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/८७

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[६] फिरफिर झाको । एकाबरन सुभाव उक्ति कर सूर सरस रस वाको॥ १ ॥ उक्ति सषी की नायका प्रति जलज नाम कमल नीतन नयन हे सषी कमल नैन मैने आज देषे है मोर सारंग ताके जे सुर है अर्थ सारंग रार के सुर है पय नाम जल बा सुरतिया सुरी अर्थ-बासुरी में सारंग के सुर समारत रुच करता नृतकार नट उतिम वर अर्थ नटवर बानिक बनाये मास भाग पछ सुर नाम वरही अर्थ मोरपक्ष सिर पै समारते देषत झुकझुक जात ते सपन की ओर वरही नाम मोर अर्थ सपन की ओर मुष मोर मोर के फिर फिर झाकत रहै ॥ १ ॥११॥ माधी अस न करवे जोग। जस करी वृषभानुजा की दसा आप वियोग॥ ससि पावस कपिन के बिच मंद राधे नैन । सह सिकारी नाग मनसिज सपिन वोर अचैन ॥ जामिनी नौका विचारत काम संग तन प्रान । चलन सुन के रावरी हो गडू सब विध हान ॥ चिमि- ल भाबिक कियो भूषन आप अदभुत आज । सूर चाहत कहा बैठो गेह में तज काज ॥१२॥ 5 उक्त सषी की नाइक प्रति के हे माधव ऐसी तिहारी करवे जोग नाहीं जैसी बृषभानजा राधा की दसा आप वियोग सुनाई के करी है । ससि नाम सकल पावस नाम वरषा कपि वानर मध के बरन ते करण म