पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ ९० ] दिनपति सुत है भूषन होन। यह निरु- त की अवध बाम तू भडू सूर हत सषी नवीन ॥६६॥ उक्ति नायका की सषी प्रत के हे सषी अघहर कहे बेनी सुर नाम सुमन समेत सोहत है तेरे नीतन कहे (जो) नयन (है) तिनते बिछुरायो (बिछुर गयो)हे सारंग सुत काजर अरु कुंत अग्र भाल ते तेरो(ताते) बंदन वित्र नाम दुज दुज नाम दसन ताकी रेष दधिसुत नाम अमृत ताको घर अधर तामे रेसम नष ताको छद घन नाम पयोधरन में पुंडरीक नाम गज ताको सुत मुक्तासो उरपै नाहीं है ते बिना साज के हो रहे हैं बानर पुत्र अंगद जो बाजूबंद है (वे बिना साज के हो रहे हैं) दधिसुत कमल अथवा चंद दीपता तज के मुरझाय गयो है दिनपति सूर्य सुत करण सो भूषण ते हीन है यह निरुक्त है अरु अवध है हे बाम तू भई सपी कों (हत कें) हम को का सपी के पति सो रमि आई है यामे बाम नाम जो साधारण इस्त्री को है ताको संजोग के जोगते जोग के जोगता ते टेढ़ी अर्थ साधो ताते निरउक्त अलंकार लक्षण । दोहा—सो निरउत्त यह जोग ते, अर्थ साधिये फेर ॥१॥९६॥ - जब ब्रजचंद चंद मुष लषि है। तब यह बान मान को तेरो अंगन आपु न रषिहै ॥ कुंत अग्र गज औ नीकन में आपुन ही ते दैहै। पापहरन में देव अनुपम गज को पुत्र समेह ॥ सुधा ग्रेह में करि को सोभा सारंग रिपु सिस बनैहै। घन ऊपर जलजासुत सोभा सुरुच सांवरी लेहै॥ भूषन बार सुधार तासु रंग