पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९७

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[ ९६ ] _सो जानो बृषभानदुलारी। सिय रिपुपितुसुत बंधु तात हित जाके चरन कमल गुनकारी ॥ कामग्रंथरि गुन रिपु मृत सम गति. अति नीक बिचारी।बई मूरत सुत रिपु पितु बाहन गेह नृपत कटि टारो ॥ भूषनपति अहारजाफल से मेघ अनोष दोऊ। सारंगमुतसुतसुत अहार सो दीपत तन मों जोऊ ॥ गिरजापतिपितुपितु से दोऊ करबर देष बिचारो। बानी सुनत तुरत अपने मन कोटि कोकिला बारो॥ निपटनदान बीज सो दसनन जव छबि पूरन पावों। अंतरिछ में परो विवशाल सहन सुभाव मिलावों। दिनचरसुत सुत सरस नासिका है कपोल श्री भाई। सारंग नैन मोह धनु बेनी नागिन सी सुषदाई ॥ बेदन अर्क विभूषित सीमा वेंदी रिछ बषानो । सूरस्याम है उपमा भूषन तब निज बात प्रमानो ॥ १०३ ॥