पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/९८

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L९७ उक्त सपी की नायक प्रतकै सो बृषभानकुमारी तुम जानो(जानने)कै सियरिपु जयंत पित इंद्र सुत अर्जुन बंधु करण पिता सूर्य हित अरुण जाके चरण (होहिं) काम ग्रंथ कोक नाम चक्रवाक रिपु रात्री गुन अंधकार रिपु दीप सुत अंजन नाम दिगज (ता सरी की गति देषो) सम गति नीकी विचारो त्रैमूरत सूर्य सुत करण रिपु अर्जुन पिता इंद्र बाहन गज गेह बन नृप सिंघ से जाको कटि है (होहिं) भूषण मुद्रापति अगस्त अहार समुद्रजा श्री फल बेल से धन पयोबर दोऊ जाकी सारंग समुद्रसुत कमलसुन ब्रह्मापुत्र शिवअहार धतूरा नाम कनक सुवरणसी दुति हो रही गिरजापति शिव पितु ब्रह्मा पित कमल से जाके कर है (होहिं) अरु जाकी वानी सुनत कोकिला वारि डारोनदान अनार के वीज की छवि जब दसनन में मिलै अरु अंतरिछ अधरन को (में पकी) कुंदुरु की छवि जब मिलै दिनचर वारचर मछरीपुत्र व्यासपुत्र सुकसी नाक (नासिका) कपोल श्रीलक्ष्मी के भाई संपसे अरु सारंग हरिनसे नैन (नेत्र) कमानसी भौंह बेनी नागिनसी सुपदाता वेदन (वेदयुत) कानन में अर्क सूर्य की सोभा भूषण में वेंदी रिक्ष तारा सी तब उपमा अलंकार (मानने या पद में उपमा अलंकार लच्छन । उपमान सु सादृश्य तें विन दोष लपि जाइ । यह अलंकार) सब ग्रंथन में नाहीं मिलत अनुमान में गतार्थ होत है ॥१०॥ - अब लों ऐसी नाहीं सुनी। जैसी करी नंद के नंदन अदभुत बात गुनी ॥ श्रवन बचन तें पावन पतिनी सारंग कहत पुकार। गुन अकास को सिध साधना सास्त्र करत विस्तार ॥ रबि ते नै जननी सुसुद्ध पनि संसकार तें होडू। रति में अधर सिया सुचि सि. मुनि मति जोडू॥ सुध सबन को