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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१०

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देवनागरी-लिपि का उत्पत्ति-काल


है। अतएव भाषा और वर्णमाला भी परिवर्तन के नियमों से खाली नहीं। जिस तरह भाषा हमेशा बदला करती है उसी तरह लिपि भी बदला करती है। देवनागरी लिपि ने भी अपने जन्म से लेकर आज तक अनेक रूप धारण किये हैं। उसके क्रम-प्राप्त रूपान्तरों का चित्र हम यहां पर प्रकाशित करते हैं (चित्र संख्या १ देखिये )।

वेदों का नाम है श्रुति । सुनकर ही उनका ज्ञान पहले होता था। इसीसे उनको श्रुति की संज्ञा मिली। यदि वे लिपिबद्ध होते तो, सम्भव है, उनको श्रुति-संज्ञा न प्राप्त होती। वेदों में लिपि या लिखने का ज़िक्र नहीं। इससे विद्वानों का अनुमान है कि वेद-काल में लिपि की उत्पत्ति न झुई थी। वेदों का ज्ञान लोगों को सुन कर ही होता था, लिखी हुई पुस्तक देखकर नहीं। वेदों के एक भाग का नाम है ब्राह्मण । वे गाथामय हैं। उनकी रचना गद्य में है। उनमें भी लिपि-सम्बन्धिनी कोई बात प्रत्यक्ष रीति पर नहीं। पर उनके रचना-क्रम पर विचार करने से जान पड़ता है कि ब्राह्मण- काल में नागरी लिपि की उत्पत्ति हो चुकी थी। पुरातन साहित्य के ज्ञाता कहते हैं कि ईसा से आठ नौ सौ वर्ष पहले ब्राह्मण-काल का आरम्भ होता है। अर्थात् हमारी वर्णमाला को उत्पन्न हुए कोई २७०० वर्ष छुए। परन्तु मोक्षमूलर आदि पाश्चात्य पण्डित इस बात का खण्डन करते हैं। वे कहते हैं कि लिख् या तत्समानार्थक धातुओं से बने हुए कोई शब्द ब्राह्मणों में नहीं पाये जाते। अतएव उस समय