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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


है। जिस विषय का ज्ञान जितना ही अधिक होता है उस विषय का शास्त्र भी उतना ही अधिक विस्तृत और महत्त्वपूर्ण होता है । भिन्न भिन्न प्रकार का यह शास्त्रीय ज्ञान पुस्तकों में संगृहीत रहता है । उनके प्रकाशन और प्रचार से सारे देश का भी कल्याण होता है और जुदा जुदा समाज का भी । एक मनुष्य के ज्ञानार्जन या ज्ञानानुभव से अनेक मनुष्यों को तभी लाभ पहुंचता है जब पुस्तकों के द्वारा उसका प्रचार होता है । इस ज्ञान-समुदाय को संगृहीत करने और फेलानेवाली पुस्तकों के समूह का नाम साहित्य है। जिस भाषा में ज्ञान-वद्धक शास्त्रों और पुस्तकों की जितनी ही अधिकता होती है उस भाषा का साहित्य-भाण्डार उतना ही अधिक श्रीसम्पन्न होता है।

ज्ञानार्जन का प्रधान साधन शिक्षा है। बिना शिक्षा के मनोविकाश नहीं होता और बिना मनाविकाश के ज्ञानोन्नति नहीं होती। अतएव ज्ञानवृद्धि के लिए शिक्षा की बड़ी आवश्यकता है। समाचारपत्रों और सामयिक पुस्तकों से भी शिक्षा मिलती है । उनसे भी ज्ञानोन्नति होती है। इससे उन्हें भी भाषा-साहित्य का एक अंग नहीं, तो एक अंश अवश्य समझना चाहिए । इन्हीं कारणों से मनोरञ्जन, समालोचन, इतिहास और जीवन-चरित आदि से सम्बन्ध रखनवाली पुस्तकें भी साहित्य के अन्तर्गत हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर अब यह देखना है कि हिन्दी के वर्तमान साहित्य की अवस्था कैसी है । हिन्दी के दूसरे साहित्य-सम्मेलन