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हिन्दी की वर्तमान अवस्था


इन 'कुछ' में से अर्धाधिक तो संस्कृत तथा कई अन्य भाषाओं के नाटकों के अनुवाद मात्र हैं। समाज की भिन्न भिन्न अवस्थाओं और दृश्यों का जैसा अच्छा चित्र अभिनय द्वारा दिखाया जा सकता है, वैसा अच्छा और किसी तरह नहीं। अभिनय के लिए ही नाटकों की रचना होती है। परन्तु, हिन्दी में नाटक के नाम से इस समय जो अनेक पुस्तकें वर्तमान हैं उनमें अधिकांश का ठीक ठीक अभिनय ही नहीं हो सकता। जो अच्छा कवि है, जिसने अनेक अभिनय देखे हैं, जो अभिनयस्थल और नेपथ्य की रचना आदि से परिचित है, जो मनुष्यस्वभाव और मानवी मनोविकारों का ज्ञाता है वही अभिनय करने योग्य अच्छे नाटकों की रचना कर सकता है। जो नाटक आजकल इन प्रान्तों में नाटक-कम्पनियों के द्वारा खेले जाते हैं वे प्राय: उर्दू में हैं। उनमें दिखलाये जानेवाले सामाजिक चित्र बहुधा अच्छे नहीं । उन्हें देख कर दर्शकों की---विशेष करके युवकों की---चित्तवृत्ति के कलुषित होने का डर रहता है। अतएव योग्य लेखकों द्वारा हिन्दी में अच्छे अच्छे नाटकों के लिखे जाने की बड़ी आवश्यकता है।

१२---उपन्यास

खुशी की बात है, हिन्दी साहित्य का यह अंग दिन पर दिन पुष्ट होता जा रहा है । यद्यपि हिन्दी में अच्छे उपन्यास,ढूँढ़ने से, दस ही पाँच निकलेंगे---यद्यपि हमारा साहित्य बुरे उपन्यासों के लिए बदनाम सा हो रहा है--तथापि उपन्यासों का अधिक प्रकाशित होना हिन्दी के उत्थान का शुभ लक्षण है।