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साहित्यालाप


उपन्यासों ही को बदौलत हिन्दी-पाठकों की संख्या में विशेष वृद्धि हुई है । उपन्यास चाहे जासूसी हो, चाहे मायावी, चाहे तिलिस्मी, विशेष करके कम उम्र के पाठकों को उन्होंने हिन्दी पढ़ने को और अवश्य आकृष्ट किया है। हिन्दी के उपन्यास का अधिकांश अन्य भाषाओं के उपन्यासों का अनुवाद मात्र है। अतएव दुःख इस बात का है कि यदि अनुवाद ही करना था तो चुन चुन कर अच्छी अच्छी पुस्तकों ही का अनुवाद क्यों न किया गया । परन्तु, जब किसी भाषा का उत्थान होता है तब सुरुचि की ओर एकदम ध्यान नहीं जाता। यह काम धीरे धीरे होता है। बंकिमबाबू और रमेशचन्द्रदत्त के उपन्यासों को आदर्श मान कर हमें उसी तरह के उपन्यासों से हिन्दी-साहित्य को अलंकृत करना चाहिए। इनके कई उपन्यासों के अनुवाद हिन्दी में हो भी चुके हैं। और,विषयों की पुस्तकों की अपेक्षा उपन्यासों के पढ़नेवालों की संख्या अधिक हुआ करती है। अतएव अच्छे उपन्यासों से बहुत लाभ और बुरे उपन्यासों से बहुत हानि होने की सम्भावना रहती है । उपन्यासों में समाज के ऐसे चित्र होने चाहिएं जिनसे दुराचार की वृद्धि न हो कर सदाचार की वृद्धि हो। इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए कि कहानी बनावटी या अति प्रकृत न जान पड़े। यदि कहानी की घटनायें स्वाभाविक होंगी तभी पाठकों के चित्त पर उनका असर पड़ेगा और समझदार पाठको का जी भी तभी पढ़ने में लगेगा। इन गुणों से पूर्ण कहानी लिखना कोई सरल काम नहीं। इसके