कि उसने उस ग्रन्थकर्ता को चचोर डाला; उस पर मुष्टिका-
प्रहार किया उसका अज्जर पज्जर ढीला कर दिया, और, सैकड़ो मन भूसी फटक कर गेहूं का एक दाना निकाल लाया ! समालोचक मूर्ख, उद्दण्ड, अभिमानी और उपहास-पात्र बनाया जाता है !! बड़े बड़े शास्त्री, विशारद, उपाध्याय और आचार्य उसके पीछे पड़ जाते हैं और उस पर यह इलज़ाम लगाते हैं कि इसने पूजनीय प्राचीन ग्रन्थकारों की कीर्ति को कलङ्कित करने की चेता को !!! जीवित ग्रन्थकारों के ग्रन्थों की समालोचना करना और प्रसंगवश उनके दोष दिखाना मानों उन्हें अपना शत्रु बनाना है; और परलोकवासी कवियों या लेखकों की पुस्तकों के प्रतिकूल कुछ कहना उनकी यशोराशि पर धब्बा लगाना है । इस “उभयतः पाशारज्जुः” की दशा में भगवान् ही हिन्दी साहित्य की इस शाखा की उत्पत्ति और उन्नति की कोई युक्ति निकाले तो निकल सकती है।
१४---फुटकर विषयों के ग्रन्थ
साहित्य की जिन शाखाओं का नामोल्लेख ऊपर किया गया उनके सिवा पुरातत्व, भूगोल, भवननिर्माण, नौका नयन, शिक्षण, व्यापार-वाणिज्य आदि और भी कितनी ही शाखायें हैं जिन पर अन्यान्य उन्नत भाषाओं में शतशः ग्रन्थों की रचना हुई है। तदतिरिक्त फुटकर विषयों के भी अनेक ग्रन्थ हैं । हिन्दी में इन शाखाओं और विषयों की बहुत ही थोड़ी