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साहित्यालाप


किये गये ज्ञान का प्रकाश गांँव गांँव, घर घर, पहुंँच सकता है। यही हमारी भाषा है; यही हमारी माताओं की भाषा है; यही हमारी बहनों की भाषा है; यही हमारे बच्चों की भाषा है। अँगरेज़ी या अन्य किसी भाषा में दी गई शिक्षा से जितना लाभ पहुँच सकता है उससे सैकड़ों गुना अधिक लाभ मातृ-भाषा में दी गई शिक्षा से पहुंँच सकता है।

किसी भी भाषा में नये नये ग्रन्थ पहले ही से नहीं निकलने लगते। जैसे जैसे शिक्षा-प्रचार और ज्ञानोन्नति होती जाती है वैसे ही वैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी बनते जाते हैं। अतएव जब तक नये नये ग्रन्थ निकलने का समय न आवे तब तक हमें चाहिए कि हम अँगरेज़ी और संस्कृत आदि भाषाओं के अच्छे अच्छे ग्रन्थों का सरल हिन्दी में अनुवाद करके अपने देश और अपने जनसमुदाय का कल्याण-साधन करें। इन भाषाओं के साहित्य में अनन्त ज्ञानराशि भरी हुई है। उसकी प्राप्ति से जय हम लोगों की विद्याभिरुचि और ज्ञानसम्पन्नता बढ़ेगी तब हम लोग भी नाना विषयों के नये नये ग्रन्थ लिख कर अपने साहित्य की पुष्टि करेंगे। हाँ, जो लोग इस समय भी अपनी उन्नत शिक्षा और विशद विद्या के कारण नये नये ग्रन्थ लिख सकते हैं उनके लिए भाषान्तर-कार्य में प्रवृत्त होने की तादृश आवश्यकता नहीं। परन्तु प्रत्येक भाषा के साहित्य में कुछ न कुछ विशेषता होती है। अतएव भिन्न भिन्न भाषाओं के विशिष्ट ग्रन्थों के अनुवाद की आवश्यकता भी सदा बनी रहती है । अँगरेजी बहुत उन्नत