करें। 'हमीं' से मेरा मतलब, शिक्षितों के मतानुसार, उन
अल्पज्ञ और अल्पशिक्षित जनों से है जो इस समय हिन्दी के साहित्य-सेवियों में गिने जाते हैं और जिनमें मैं अपने को सबसे निकृष्ट समझता हूं । पिछले साहित्य-सम्मेलन ने क्या काम किया और क्या न किया, इस पर विचार करने की यहाँ, इस लेख में, आवश्यकता नहीं। उसको तो रिपोर्ट भी अब तक मेरे देखने में नहीं आई । आवश्यकता इस समय हिन्दी में थोड़ी सी अच्छी अच्छी पुस्तकों की है। विभक्तियां मिला कर लिखनी चाहिए या अलग अलग, पाई,गई और आई आदि शब्दों में केवल ई-स्वर लिखना चाहिए या ई-युक्त यकार; पर-सवर्ण सम्बन्धी नियम का पालन करना करना चाहिए या केवल अनुस्वार से काम लेना चाहिए---ये तथा और भी ऐसी ही अनेक बातों पर विचार करने की भी आवश्यकता है। परन्तु तदपेक्षा अधिक आवश्यकता उपयोगी
विषयों की कुछ पुस्तकें लिखने की है। आइए, हमलोग मिल कर भिन्न भिन्न विषय की एक एक पुस्तक लिखने का भार अपने ऊपर लेले; और एक वर्ष बाद, उसकी छपी हुई या हस्तलिखित कापी अगले सम्मेलन में उपस्थित करके यह दिखला दें कि अपनी मातृभाषा हिन्दी पर हमारा कितना प्रेम है और उसकी सेवा करना हम कहां तक अपना कर्तव्य समझते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अल्पज्ञता के कारण हमसे यह काम उतना अच्छा न हो सकेगा जितना अच्छा संस्कृत और अङ्गरेज़ी के पराङ्गत विद्वानों से हो
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