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कौंसिल में हिन्दी


किसीने इस आज्ञापत्र के अनुसार देवनागरी-लिपि से काम लेना भी चाहा तो उदारता के इन अवतारों में से अधिकांश ने उसके मार्ग में बबूल के बड़े बड़े काँटे बखेरने से हाथ न हटाया। यदि ये लोग अपने कर्तव्य का पालन करते तो करोड़ों आदमियों को लाभ पहुँचता। अब तक वे देवनागरी ही में कचहरी का काम करने लग जाते और सम्मन, इत्तिलानामे आदि पढ़ाने के लिए उन्हें कोसों न दोड़ना पड़ता। उर्दू की तरह वे हिन्दी (देवनागरी) में भी लिखे जाते । अभी तो सम्मनों की देवनागरो-वाली फ़र्द बहुधा कोरी ही रह जाती है । अभी उस दिन हमने एक ऐसा सम्मन देखा जो छपा देवनागरी में था, पर खानापुरी की गई थी फ़ारसी-लिपि में !

पूर्वोक्त आज्ञा देकर गवर्नमेन्ट ने अधिकांश लोगों के लिए बहुत सुभीता कर दिया । उसे करना ही चाहिए था। प्रजा-रजक राजा का यह कर्त्तव्य ही है। इन प्रान्तों में हिन्दी भाषा और देवनागरी-लिपि के जाननेवाले ही अधिक हैं इसीसे गवर्नमेन्ट ने यह भी नियम कर दिया है कि---

(१) आई० सी० एस० श्रेणी के बड़े बड़े कर्मचारियों,(२)डिपुटी कलेक्टरों और ( ३ ) पुलिस के असिस्टैंट और डिपटी सुपरिंटेंडेंटों के लिए भी देवनागरी और फ़ारसी दोनों लिपियाँ जानना ज़रूरी है। अब तो वह प्लीडरों, वकीलों, और एल-एल० बी० की परीक्षा पास कनूनदाँ लोगों को भी देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा सीखने के लिए मजबूर करती है। याद रहे, यही लोग बहुत करके मुन्सिफ़ और