पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१४५

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८—कौंसिल में हिन्दी

जिस समय सर अन्टोनी मेकडानल इस प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे उस समय, १९००ई० में, उन्होंने यह नियम कर दिया कि दीवानी, फ़ाजदारी और माल की किसी भी अदालत में जिसका जी चाहे देवनागरी-लिपि में अर्जी-दावे और अरजियाँ दे और जिसका जी चाहे फारसी-लिपि में। उन्होंने यह भी नियम कर दिया कि समन और भिन्न भिन्न प्रकार की विज्ञप्तियाँ आदि हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में कचहरियों से जारी की जायँ। अंगरेजी के दत्फ़रों को छोड़ कर और कचहरियों के कर्म्मचारियों को साल भर के अन्दर हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषायें सीख लेने का भी हुक्म हो गया। इससे देवनागरी-लिपि में अर्ज़ियाँ इत्यादि लेने और समन इत्यादि निकालनेवाली अदालतों के हाकिमों और मुलाज़िमों के लिए दोनों लिपियाँ जानना आवश्यक हो गया। यह सब कुछ तो हुआ, पर जिन लोगों के बाप-दादों की बदौलत नागरी-लिपि उत्पन्न हुई और अब तक जीती है, जिनके धर्म्म-कर्म्म के सारे ग्रन्थ इसी लिपि में हैं मरने के समय जिनके कान में इसी लिपि में लिखे गये धर्मोपदेश और राम-नाम पड़ते हैं उन्हींकी कृपा से सर अन्टोनी मेकडानल की पूर्वोक्त आज्ञा यथेट फलीभूत न हुई। उन्होंने अपनी पूर्वपरिचित्त भाषा और टेढ़ी-मेढ़ी लिपि लिखना न छोड़ा। यदि