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साहित्यालाप


किताबें लिखी हैं । उनको देख कर अँगरेज़ विद्वान तक चकित होते हैं। स्त्रियों तक ने बड़ी बड़ी किताबें अँगरेज़ी में लिख डाली हैं। इस समय कितने ही हिन्दुस्तानी विद्वान् अँगरेज़ी में अखबारों का सम्पादन बड़ी ही योग्यता से कर रहे हैं। और कौंसिल में बैठ कर अपनी अँगरेज़ी वक्ताओं से अँगरेज़ श्रोताओं को आश्चर्य में डाल रहे हैं। अँगरेज़ों की विलायत तक में हिन्दुस्तानियों ने वक्तताओं की धूम मचा दी है। सेकड़ों अँगरेज़ों के साथ परीक्षा में बैठ कर कितने ही हिन्दुस्तानी अँगरेज़ों को हर साल नीचा दिखा रहे हैं । परन्तु कितने साहब ऐसे हैं जो हिन्दुस्तान की भाषाओं में अनबार या पुस्तकें लिखते हो या पढ़े लिखे हिन्दुस्तानियों के सामने व्याख्यान देते हों ? यदि देश भर में कहीं एक दो हों भी तो वे न होने के बराबर हैं। बीम्स, हार्नली और ग्राउन साहब आदि हिन्दी के बहुत बड़े जाननेवाले माने जाते हैं । परन्तु हिन्दी में उन्होंने कितनी कितावें लिखी हैं ? जो कुछ हिन्दी के विषय में उन्होंने लिखा है प्रायः सभी अँगरेज़ी में।

मोक्षमूलर, वेबर, रोट, बूलर, पिटर्सन, कीलहार्न, विलपन और विलियम्स संस्कृत के प्राचार्य समझे जाते हैं। पर आप लोगों के कलम से निकली हुई संस्कृत की पुस्तकें शायद ही किसीने देखी हो। हां, संस्कृत की पुस्तकों का सम्पादन इन लोगों ने धड़ाके से किया है और आलोचना प्रत्यालोचना के रूप में संस्कृत-साहित्य-सम्बन्धी किताबें अँगरेज़ी में खब